भौतिक गुरु और आध्यात्मिक गुरु में अंतर और उनकी जरुरत
पटना (बिहार)इस समय के महापुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि जैसे यह भौतिक विद्या पढ़ाने वाले मास्टर होते हैं, ऐसे कोई मास्टर होगा जिसको स्पिरिचुअल मास्टर, मुर्शिदे कामिद, सच्चा गुरु, समरथ गुरु कहा गया, वह आत्मज्ञान करा सकता है तब सब ज्ञान, सारी चीजों का ज्ञान हो जाता है। आत्मज्ञान के बदौलत ही यह जीवात्मा नरक और चौरासी लाख योनियों में जाने से, जन्मने-मरने की पीड़ा से बच जाती है। समरथ गुरु इस धरती पर हमेशा रहे हैं। गुरु तो कई तरह के होते हैं। माता-पिता भी गुरु है। जो सीखा दे- उठना बैठना, खेती दूकान चलाना, रास्ता बता दे, जूता सिलना, कपड़ा प्रेस करना, सिलाई करना, बिजली का काम बता दे आदि, उसको गुरु कहते हैं। कुछ गुरु ऐसे भी होते हैं जिनकी जरूरत बच्चों को तुरंत पड़ती है जैसे मां दूध पीना सिखाती है। बच्चों को दूध पीना भी नहीं आता है। बच्चा तो दूध जानता ही नहीं, जब पैदा होता है तब। भूख भले ही लगती है उसको लेकिन पी नहीं पाता है तो मां सिखाती है। टट्टी-पेशाब करना सिखाती है। पिता भाई सिखाते हैं। बहुत सी बातों को समाज के लोग बताते हैं। एबीसीडी पढ़ाने वाले विद्या गुरु कहलाते हैं। और आध्यात्मिक गुरु अलग होते हैं।
आध्यत्मिक गुरु ही अंतर और बाहर, दोनों के बंधन से मुक्त करवाते हैं
दुनिया की सारी विद्या पढने के बाद, सारी जानकारी ले लेने के बाद भी आध्यात्मिक गुरु, आध्यात्मिक ज्ञान की जरूरत होती है। वह गुरु कैसे कहलाते हैं? कहा गया है गुरु गुरु सब बड़े, कोई नाहीं छोट और शब्द पारखी महीन है, बाकी चावल मोठ। चावल आप खाते जानते हो। एक मोटा चावल होता है जिसको लोग कम पसंद करते हैं, देर में हजम होता है। और दुसरा महीन चावल होता है जिसका स्वाद अच्छा होता है, लोग ज्यादा पसंद करते हैं। ऐसे ही महीन गुरु उनको बताया गया है जो शब्द पारखी होते हैं। वह बंधन से मुक्त कर देते हैं। कौन से बंधन से? यह जो जीवात्मा बंधन में है, चार शरीर के अंदर बंद है। स्थूल शरीर, लिंग शरीर, कारण शरीर, सूक्ष्म शरीर, इस बंधन से मुक्त करा देते हैं। बाकी दूसरा बंधन शरीर का बंधन, खाने, कपड़े का इंतजाम। शरीर अगर न मिला होता मुंह पेट न होता तो आदमी को कुछ फिक्र नहीं होती। यह शरीर हो गया तो इसका इंतजाम सब करना है, खाने पहनने का आदि यह बंधन है। औरत आ गई, अब उसकी भी देख रेख करना, उसकी भी इच्छाओं की पूर्ति करना। लड़का हो गया, तीसरा बंधन आ गया। लड़के के लड़का हो गया चौथा बंधन आ गया। धन दौलत हाठ-हवेली यह सब बंधन है। चोलड पचलड सतलड रसरी, काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, यह सब बंधन है। तो इसमें फंस गया आदमी। इन बंधनों से जो मुक्त करता है वह गुरु कहलाते हैं। बहुत से लोगों को उपाय बता देते हैं कि ऐसा करो ताकि तुम्हारे घर में तकलीफ दूर हो जाएगी। चले जाओ मजार पर चादर चढा दो तो फायदा हो जायेगा, पिंड दान कर आओ तो भूत उतर जायेगे आदि, यह जो इस तरह का आराम दिला देते हैं वह भी गुरुजी होते हैं। लेकिन वह इस तरह के होते है जैसे कोई भूखा है, बरकत नहीं हो रही है, धंधा, मेहनत बहुत कर रहा है। उसको कोई छोटा-मोटा उपाय बता दिया, बता दिया कि मेहनत ईमानदारी से काम करोगे तो बरकत होगी तो अब पैसा आने लग गया, कपड़ा भी अच्छा हो गया, अब बरकत उसको होने लग गई। मेहनत ईमानदारी की कमाई नहीं करता है तो बरकत खत्म हो जाती है। तो उस तरह का बंधन है। जेल में कोई भूखा हो, उसे रोटी खिला दो, कपड़ा न हो तो कपड़ा दे दो, ठंडी है तो कंबल दे दो तब कहेगा आपने मेरे उपर उपकार किया। और एक आदमी गया और जेल से ही निकलवा दिया। तब निकलने वाला कहता है आपने तो हमको मुक्त करा दिया। आपने मेरे ऊपर बहुत बड़ा उपकार किया। तो जो इस धरती पर वक्त के सन्त होते हैं, वह दोनों काम करते हैं। वह बंधन को काट करके मुक्त करा दिया करते हैं। कौन सा बंधन? यह जो दुनिया का, जगत का बंधन है, यह मोटा बंधन कहा गया, इसको भी कटवाते हैं। सूक्ष्म शरीर, लिंग शरीर, कारण शरीर का बंधन होता है वह झीना (बारीक) बंधन होता है, उससे भी मुक्त करा देते हैं। तो यह कैसे होता है? कहा गया है- मोटे बंधन जगत के गुरु भक्ति से काट, झीने बंधन चित के, कटे नाम प्रताप। मोटे जब जाए नहीं झीने कैसे जाएं, याते सबको चाहिए, नित गुरू भक्ति कमाए। जब गुरु भक्ति करोगे तब ये दोनों बंधन कटेंगे। गुरु भक्ति किसको कहते हैं? गुरु के आदेश के पालन को गुरु भक्ति कहते हैं।