कंबल, टोपा ऐसे को बांटो जिसको वाकई में है जरूरत -सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज

उज्जैन (म.प्र)सबको बराबर मानने वाले, सबको अपना समझने वाले, सबसे प्रेम करने वाले, दुखहर्ता, पूरे सन्त सतगुरु बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 29 अक्टूबर 2023 उज्जैन आश्रम में दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर प्रसारित लाइव सतसंग में बताया कि देखो प्रेमियों! अब इस समय पर ठंडी आने वाली है। ठंडी के महीने में आप लोग गरीबों को कंबल-टोपा बांटते हो। लेकिन हम ये चाहते हैं कि उन तक पहुंचे जिनको जरूरत है। जिनके पास है, उनके पास तो है ही। जिनके पास नहीं है, उनको देने की जरूरत है। वहां आप पहुंच नहीं पाते हो, आलस्य कर जाते हो, वहां पहुंचो।

अब लोग कहते हैं शहर में तो सब कमाते, खाते हैं। बात तो सही है। शहर और गांव का रहन-सहन इसीलिए बदल जाता है क्योंकि वहां मेहनत मिलती है। मेहनत करते हैं तो मजदूरी, तनख्वाह अच्छी मिलती है। दफ्तर वहीं पर है, बड़ी-बड़ी एजेंसियां, बड़े-बड़े व्यापारी हैं। वो लोग पैसा कमाते हैं तो पैसा देते हैं। तो उनका रहन-सहन तो अच्छा है लेकिन वहीं पर घर बनते हैं, वहीं पर नाला बनता है, वहीं पर सरकारी काम होता है। तो वहां पर मजदूरी करने के लिए कौन जाता है? बेचारा गरीब आदमी जाता है। फटी पुरानी हालत में रहने वाला आदमी, पेट के लिए घर छोड़ करके वहां जाता है। तो कहां रहता है? वो दस-पचास हजार रुपया के होटल में रहता है? या 4-10 करोड़ के फ्लैट में रहता है? वो तो बेचारा झुग्गी-झोपड़ी में, कहीं भी जगह मिल गई, वहीं पर बना के रह जाता है। घर-कॉलोनी बनाने का ठेका लिया हुआ ठेकेदार जहां जगह दे देता है, जो भी टीन शेड़ बनवा देता है, उसी में रहता है। तो वहां चले जाओ। उधर झुग्गी-झोपड़ी की तरफ, शाम के टाइम चले जाओ। देखोगे, उनका कोई दरवाजा, लॉकर या अलमारी होती है? वो तो वहीं सब रखे रहते हैं।

उसको दो, उसको टोपा पहनाओ। और जो कार चलाने के लिए कपड़ा बांधा है, कार से जाता है, अपना कार छोड़ देता है और साहब का कार चलाता है, उसको जब आप दोगे तो क्या करेगा? वो ओढ़ेगा? अरे वो तो बिछाएगा। क्योंकि वो तो साहब जो दस हजार रुपये का कंबल दे दिए, उसको वो ओढ़ता है। वो तुम्हारा दिया ये कंबल थोड़ी ओढ़ेगा? वो तो जमीन में बिछाएगा। तो उसका उपयोग होना चाहिए। तो ऐसे को दो जिसकी आत्मा को सुख मिले, मन को आराम मिले, उसको दो।

पिछले साल प्रेमियों ने खूब मेहनत किया। कहां गए? वो पहाड़ियों पर, वो झुग्गी-झोपड़ियों में, वो सब जगह गए। उन्होंने मेहनत किया और उनको दिया। किसको? रात को जो बोरा ओढ़े हुए हैं, जो बोरा के ऊपर पुआल, घास डाले हुए हैं, वो समय को अपने काट रहा है। उसको ओढ़ाया, एक की जगह दो-दो ओढ़ा दिया। कहा अब तो देखो, ठंडी नहीं लगेगी। वो रोम-रोम उसका यानी समझो खुश हो गया। रोम-रोम मुस्काने लग गया कि देखो कैसे दिया। किससे कहेगा? उसको जल्दी कोई देता भी नहीं है। जिससे जिसका स्वार्थ होता है, उसको लोग देते हैं कि हमारा ये नौकर, कर्मचारी खुश हो जाए तो ये हमारा काम बढ़ा देगा, ज्यादा काम करेगा, उसको लोग देना पसंद करते हैं और कहते हैं मैंने बड़ा परोपकार किया। वर्दी बांट दिया, कंबल दे दिया, मैंने ये काम किया, मैंने वो काम किया। अरे भाई उसको दो बेचारे को जो जरूरत वाला है, जो याचना करता है। तो जब कोई आदमी नहीं देता है, उसको बेचारे को तब वो प्रभु से फरियाद लगता है। एक आदमी ने मेरे से ही कहा। क्या करूं? गरीबी झेलने के लिए ही पैदा हुआ हूं। तो क्या करूं, अब अमीरी हमको कहां से मिलेगी। लेकिन फिर उसी ने बताया। यही आपके हीरापुर, सागर जिला की बात है। बहुत पहले की बात है, जब हम प्रचार में गए थे, मध्य प्रदेश में। तो उसने बताया कि जब से गुरु महाराज का नामदान लिया और जब से यह बोरा टाट पहना तब से अब खाने की दिक्कत नहीं होती है। नहीं तो पहले खाने की भी दिक्कत हो जाती थी। लोग हमको परेशान भी करते, सताते भी थे लेकिन अब नहीं बोलते हैं। तो समझो कि दया तो हो रही थी। तो कहने का मतलब ये है कि गरीव आदमी जब प्रभु को आवाज लगाता है तो वो तो सुनवाई करता ही है। सब उसी प्रभु के बच्चे हैं। तो उनको दो, उनको बांटो। आपको तो संगत भी सुविधा देती है बांटने की, संस्था भी देती है। उनको दो आप। आप ये सब जो भी (संस्था के नि:शुल्क सामाजिक रचनात्मक परोपकारी) काम है, करते रहना।

यूट्यूब पर अगर सतसंग सुनते रहते हो या सुनने की आदत डालोगे तो वहां पर बता देंगे कि ये लेना-देना कैसे अदा होता है। ये छूट गया। इस विषय में समय लगेगा। पीछे के सतसंगो को अगर आप सुनोगे तो उसमें भी बताया गया है और नहीं तो किसी और दिन सुना देंगे। (साधना टीवी) चैनल पर भी (नित्य प्रात: 8:40 से) आता है, उस पर सुन लेना।

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