बच्चों की शिक्षा के लिए करनी पड़ रही जेब ढीली
रामकिशोर यादव लखनऊ ब्यूरो चीफ
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी में निजी स्कूलों की लूट ने अभिभावकों को आफत में डाल दिया है ₹1000 में मिलने वाली किताबें 2000 से 3000 रुपए में मिल रही है। एक माध्यम वर्गीय परिवार के लिए अप्रैल का महीना आफत का महीना बनकर सामने आता है। सत्र शुरू होते ही अभिभावकों का संघर्ष भी शुरू होने लगता है। हद तो तब हो जाती है जब अभिभावकों को विद्यालय द्वारा अधिकृत विक्रेता से ही दोगुने दामों पर कॉपी किताबें लेने पर मजबूर होना पड़ता है। ऐसा इसलिए क्योंकि विद्यालय को इससे मोटा कमीशन विक्रेता से प्राप्त होता है प्राइवेट स्कूल कॉपी,किताबों वालों से रखते हैं पूरा सिस्टम अत्यधिक मूल्य पर कापी किताबें बेचकर गरीबों की जेबें ढीली कर रहे हैं सरकार इस पर चुप्पी साधे बैठी है।
आपको बता दें कि 2014 में सरकार आने के बाद प्रधानमंत्री मोदी जी ने वादा किया था कि पूरे देश में नई शिक्षा नीति लाकर कोर्स में समानता लाई जाएगी और सबको समान शिक्षा पर बल दिया जाएगा लेकिन आज तक अभिभावकों को प्राइवेट स्कूल माफिया से बचाने का कोई रास्ता नहीं बना।
आज भारत में तीन केंद्रीय बोर्ड और 33 राज्य स्तरीय बोर्ड है जो अपना अलग-अलग कोर्स व पैटर्न रखते हैं जिनका फायदा प्राइवेट संस्थान जमकर उठा रहे हैं ।
माता-पिता के लिए यह बड़ा प्रश्न है की राशन खरीदे या बच्चों को पढ़ाये माता-पिता के बीच काफी रोष दिख रहा है।
क्या कहते हैं अभिभावक..
1 . मीरा गौतम ने कहा कि सरकार को एक देश एक शिक्षा पर बल देते हुए सरकारी शिक्षा पर विशेष ध्यान देना चाहिए ताकि गरीब व मध्यम वर्गीय परिवारों के बच्चे भी शिक्षा प्राप्त कर समाज में सम्मानजनक जीवन यापन कर सकें।
- मनीष ने बताया की सभी स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबें लागू होनी चाहिए। स्कूलों में नियमित जांच करके नियम विरुद्ध कोर्स चलाने वाले की मान्यता तुरंत निरस्त करना चाहिए।