सन्त बाबा उमाकान्त जी ने बताया देवताओं को किस बात की फ़िक्र रहती है, अब आप क्या भूले हुए हो

जयपुर (राजस्थान) इस सृष्टि के नीचे से उपर तक के सारे भेद और बारीकियां जानने वाले, घर-गृहस्थी को भी सेट करने और साथ ही आत्म कल्याण के उपाय बताने वाले इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 1 जुलाई 2023 सायं जयपुर (राजस्थान) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि इस वक्त पर पांच धनी है, जिनका नाम, रूप, स्थान और आवाज मैं आपको बताऊंगा, समझाऊंगा, रटाऊंगा याद कराऊंगा। और जो युक्ति उपाय बताऊंगा, उस तरह से अगर आप करोगे तो आप उनसे मिलोगे, उनका दर्शन और उनसे बात भी करोगे। तो यह देवता धनी जो भी आप कह लो, यह पांच है। किसी को भी बताना मत। अगर आप बता दोगे उसका तो कोई फायदा होने वाला नहीं है क्योंकि जिसको (नाम बताने का) आदेश होता है, उसके मुंह से सुनना जरूरी होता है।

उम्मीद से अधिक जब कोई काम करने, सेवा करने लगता है तो उसको लोग भगवान कहने लग जाते हैं। आदमी औकात से ज्यादा जब काम, सेवा करता है, लोगों के काम आता है, तो उसे लोग देवता कहने लगते हैं। सन्त दयालु होते हैं। वह तो दया ही करते हैं। और डांट-फटकार भी अगर करते हैं तो टूटने नहीं देते हैं। अपना अनुभव बता रहा हूँ। खूब फटकारा, बहुत डांटा, कभी-कभी तो ऐसा होता था कि किसी दूसरे को शिक्षा देना होता था, गलती कोई करता था, तो डांट मुझको पड़ती थी और मैं दुखी हो जाता था। (सोचता था) हमको देखकर क्यों कह रहे हैं। लेकिन बाद में पता चलता था कि यह तो कई लोगों को कह रहे हैं। सब लोग जो सोच विचार वाले, समझदार हैं, अपने-अपने लिए ही समझेंगे कि गलती कोई (और) किया है और डांट हमको रहे हैं। कभी-कभी बहुत ज्यादा खिन्नता होती थी कि बड़ा मुश्किल हो जाएगा यहां जीना। सन्तों के पास रहना तलवार की धार पर रहना होता है। बड़ा मुश्किल होता है। जैसे कहा गया- साहब के अगाड़ी, घोड़े के पिछाड़ी और सन्तों के चारों तरफ बहुत ही होशियारी से रहना चाहिए। तो मानव स्वभाव था, मानव शरीर था। इतना ज्ञान नहीं था कि गुरु होते क्या है। अंतर में गुरु की पहचान नहीं थी तब विचलित हो जाता था। लेकिन जरूरत से ज्यादा जब प्रेम मिल जाता था तब वह दु:ख घाव भर जाता था, वह दर्द खत्म हो जाता था। जब बढ़िया दवा मिल जाती थी तो खुश हो जाता था। कहा गया है- गुरु कुम्हार शिष्य कुंभ है, गढ़ी गढ़ी काढ़े खोट, अंतर हाथ सहार कर बाहर मारे चोट। गुरु जो होते हैं जब बनाते हैं, किसी को तैयार करते हैं तो ठोक-पीट डांट-फटकार सब करते हैं। दुनियादारी जैसा ही व्यवहार करते हैं। बताते, बुलाते, फटकारते हैं, हर तरह से पक्का तैयार करते हैं। जो अपनी टीम में भर्ती करते हैं चाहे सुरक्षा वाले हो चाहे और अपराध करने वाले हो तो उनको ट्रेन (प्रशिक्षण) करते हैं। तो ट्रेनिंग में बहुत से लोग भाग जाते हैं। अपराधियों के चंगुल में जो जवान लोग पड़ जाते हैं वह तो निकल नहीं सकते हैं, इस तरह का उनका घेरा रहता है। जैसे मिलिट्री में भर्ती होने पर निकलना बड़ा मुश्किल हो जाता है। ऐसे ही निकलना तो मुश्किल होता है लेकिन दिनभर जब दौड़ाये, उठा-बैठी करवाए और शाम को खाने को खीर, हलवा, पूड़ी मिल गया तो मस्त हो गए। भूल गए, दु:ख दूर हो गया जब गुड खिला दिया। थकावट दूर हो गई तब वह तकलीफ भूल जाते हैं। तो गुरु बनाते तैयार करते हैं। ऐसे सन्त भी जैसे कुम्हार घड़ा तैयार करता है तो उसे सुंदर सुडौल बनाने के लिए ठोकता पीटता है लेकिन हाथ अंदर लगाए रहता है ताकि टूटे न। गुरु महाराज ने बनाया तैयार किया, जिससे गुरु की दया से आज आपके सामने कुछ कहने लायक मैं बना।

महाराज जी ने 3 जुलाई 2023 प्रातः जयपुर (राजस्थान) में बताया कि देवता लोक में जो देवता रहते हैं उनका भी शरीर है। उनका 17 तत्व का लिंग शरीर है। उनको कोई टेंशन नहीं है। उनको खाने, रहने, पहनने की कोई चिंता फिक्र नहीं है। कोई घर नहीं बनाना, कोई बिजली पानी का बिल जमा नहीं करना, कोई गैस सिलेंडर नहीं लाना, कोई चूल्हा चक्की का इंतजाम नहीं करना। उनको कुछ नहीं करना है। बहुत सुखी हैं। लेकिन हमेशा इस बात के लिए दुखी रहते हैं कि हमारी मुक्ति कब होगी। हमारी जीवात्मा प्रभु के पास कब पहुंचेगी। हम इससे छुटकारा कैसे पाएंगे। फिक्र रहती है कि हमको मनुष्य शरीर में ही जाना पड़ेगा तब वह प्रभु मिलेगा, तब उसके पास हम पहुंचेंगे। फिक्र रहती है कि हमें 9 महीने मां के पेट में लटकना ही पड़ेगा, मां के पेट की गर्मी बर्दाश्त करनी पड़ेगी। इसलिए देवता बराबर प्रार्थना करते रहते हैं कि हमारे पुण्य कर्म जल्दी खत्म हो गए। पुण्य क्षीणे मृत्यु लोके। हम मृत्यु लोक में जाएं, मां के पेट में बन करके बाहर निकले और समरथ गुरु जानकर को खोजें, रास्ता ले और भजन करके प्रभु आपके पास पहुंच जाए। अब प्रभु कृपा करो यहि भाति, सब तज भजन करहूँ दिन राती। कहते हैं सब कुछ त्याग करके दिन रात भजन करूंगा। लेकिन अब आपको याद आ रहा है कि वादा किया था, फंसने से बचने के लिए मनुष्य शरीर मिला है? कि नरकों में काटे, सडाये, गलाये, तपाये न जाए। इसकी फिकर है आपको? नहीं फिक्र है। बस यही सोच रहे हैं कि खाने, सोने, पहनने, बच्चा पैदा करने के लिए, नाती, पोता, पूरे परिवार की सेवा करने के लिए यह मनुष्य शरीर मिला है। यही सब लोग बताते हैं। तो माता-पिता, सास-ससुर की सेवा करो, बच्चों की परवरिश करो, गृहस्थ धर्म का पालन करो, जरूरी तो यह भी है। एक-दुसरे का कर्जा अदा करने के लिए परिवार में जोड़ा जाता है। अदा करना सीख लो तो प्रेम से अदा होगा नहीं तो इसी गृहस्थ आश्रम में गाली-गलौज, मारपीट, खून-क़त्ल तक हो जाता है। तो ये भी कर लो और साथ ही अपनी आत्मा का कल्याण भी कर लो। सन्तों से सब सीख लो।

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