पूरे शब्द भेदी गुरु को खोजो, फिर जब अन्तर में ज्योति जलेगी तब होगी असली दीपावली

उज्जैन (मध्य प्रदेश)इस दीपवाली त्योंहार पर सभी धर्म प्रेमियों को अपने अनमोल मनुष्य जीवन के असली उद्देश्य- अपने निज घर सतलोक जाने की प्राप्ति के लिए पूरे आध्यात्मिक गुरु की खोज, महत्व, महिमा, अनिवार्यता को धर्म पुस्तकों, संतों की वाणियों, के रूप में भारत के इतिहास में बिखरे मोतियों के माध्यम से बार-बार रेखांकित कर चेतना दिलाने वाले इस समय के पूरे सन्त सतगुरु बाबा उमाकान्त जी महाराज ने दीपवाली कार्यक्रम में 4 नवंबर 2021 को अपने उज्जैन आश्रम में दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर प्रसारित सतसंग में बताया कि जब-जब धर्म की हानि होती है, दुष्टता बढ़ती है और भारतीय संस्कृति खत्म होती है, उस वक्त पर कोई न कोई समझाने-बताने के लिए भेजा जाता है। उनकी बातों को सुनकर-मानकर वह चीज वापस लाई जा सकती है।

गत वर्षो की भांति इस वर्ष भी दीपावली में आश्रम पर (बाबा जय गुरु देव धर्म विकास संस्था, पिंगलेश्वर रेलवे स्टेशन के सामने, मक्सी रोड़, उज्जैन, म.प्र. मो. 9575600700) सतसंग व नामदान कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। इस समय पर बीमारी, लड़ाई-झगड़ा, बेरोजगारी, सूखा, बाढ़, भूस्खलन, अकाल मृत्यु तथा जातिवाद, धर्मवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद, भाई-भतीजावाद, आतंकवाद, नक्सलवाद, माओवाद से परेशानी ही नहीं बल्कि लोगों की जान भी चली जा रही है। परम् सन्त बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी बाबा उमाकान्त जी महाराज दीपावली के शुभ अवसर पर घट-घट में दीपक जलाकर तकलीफों को कैसे दूर किया जा सकता है?- यह तो बताएंगे ही साथ ही साथ इसी मनुष्य शरीर रूपी मंदिर में भगवान के दर्शन का उपाय (नामदान) भी बताएंगे। आप सभी लोग परिवार, इष्ट मित्रों सहित समय से पधार कर फायदा उठा लीजिएगा।

महाराज जी ने 24 अक्टूबर 2022 दोपहर उज्जैन आश्रम में बताया कि एक दीपावली अंतर में होती है। वह ज्योति अगर अंदर में दिखाई पड़ जाए, अंदर में जल जाए तो फिर इस (बाहरी) आंख की कोई जरूरत नहीं रहती है। अंदर की आंख से ही बाहर और अंदर देखा जा सकता है। बहुत समय पहले की बात है गुरु महाराज के एक प्रेमी थे गोरखपुर में। नामदानी थे उनकी आंख चली गई थी। उनको बाहर से दिखाई नहीं पड़ता था। लेकिन अंदर की आंख उनकी खुली हुई थी। तो टट्टी पेशाब कराने के लिए उनका पोता उनको ले जाया करता था। घर का कोई भी आदमी उनको ले जाता था। बाहर लोग जाते थे। पहले आज की तरह तो लैट्रिंग नहीं थी। कोई भी काम के लिए कहीं जाना होता तो परिवार के लोग उनको ले जाते थे लेकिन कभी-कभी प्रेमी लोग जब उनसे मिलने के लिए आते तो वह देख करके उससे कह देते अरे यह तो बहुत दिन के बाद आ रहा है, अरे यह तो पेरवा (पीला) कुर्ता पहने हुए हैं, ऐसे मौज में देखकर के बोल देते थे। तो बहुएं कहती थी यह तो नाटक किये हुये हैं, नौटंकी करते हैं, सहारा खोजते हैं। यह देखते सब है लेकिन यह बताते नहीं है। समझ लो, अगर एक बार अंदर में उजाला हो जाए, अंदर में दीपक जल जाए, अंदर के आंख की गंदगी खत्म हो जाए तो जीवन उज्जवलमय हो जाता है। लोग कहते हैं आपका भविष्य उज्जवलमय हो, जीवन उज्जवलमय हो। तो यह फिर उज्जवलमय हो जाता है। फिर यहाँ कोई दीपक जलाओ न जलाओ, कोई भी काजल इसमें लगाओ न लगाओ, बाहर में तो फिर कोई जरूरत ही नहीं है। अंदर में घट में उजाला हो जाए तो सब काम अभी प्रेमियों बन जाए।

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