ज्ञानेश्वर बरनवाल देवरिया
देवरिया विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के संदर्भ में देवरहा बाबा मेडिकल कॉलेज के चिकित्सक डॉ अंबू पांडेय ने कहा कि १० अक्टूबर विश्व मानसिक स्वास्थय दिवस के रूप में मनाया जाता है | यह दिन हमे मानसिक स्वास्थय एवं मानसिक रोगों के प्रति जागरूकता का प्रसार करने का अवसर प्रदान करता है | इस दिन मानसिक स्वास्थय अर्जित करने के राह में आने वाली अड़चनों को चिन्हित कर उनके उन्मूलन के लिए नीति निर्माताओं का ध्यान आकर्षित करने का अवसर भी मिलता है |
कोरोना महामारी के बाद से मानसिक स्वास्थय समस्याओं में भयावह वृद्धि हुई है |विश्व में हर ८ में से १ व्यक्ति मानसिक रोग से ग्रसित है |
मानसिक रोगों में हो रही वृद्धि के कारण विश्व के सभी देशों में भारी स्वास्थय एवं आर्थिक क्षति का वहन करना पड़ रहा है | अतः मानसिक स्वास्थय के प्रति जागरूकता और महत्वपूर्ण हो जाती है
इस वर्ष विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस का विषय है
” मानसिक स्वास्थ्य : सार्वभौमिक मानवाधिकार “
मानसिक स्वास्थ्य और मानवाधिकारों में एक द्विदिशीय सम्बन्ध है |
मानवाधिकारों के उल्लंघन का मानसिक स्वास्थय पर अत्यंत नकारात्मक प्रभाव होता है और मानवाधिकारों के पालन उत्तम मानसिक स्वास्थय को प्राप्त करने में प्रभावी है |
संकट की परिस्थितियां जैसे कि कोरोना काल , प्राकृतिक आपदाएं , विस्थापन , यातनाएं इत्यादि जहाँ प्रायः लोग मूलभूत मानवाधिकारों से वंचित रह जाते हैं तो मानसिक समस्याएं उत्पन्न होने लग जाती हैं और विभिन्न मानसिक रोगो में वृद्धि होने लगती है |
पूर्व में प्रयोग होने वाले मानसिक रोगो के उपचार के तरीके जिनमे मानसिक रोगियों को समाज से अलग रखा जाता था , लम्बे समय तक मानसिक अस्पतालों में बंदियों कि भांति रखा जाता था अथवा जबरदस्ती झाड़ फूक और उपचार के नाम पे यातनाएं दे कर मानसिक रोग से पीड़ित व्यक्तियों के मानवाधिकारों का हनन होता था जो अभी भी समाज में व्याप्प्त है | मानव अधिकारों का उल्लंघन मानसिक स्वास्थ्य लाभ में भरी अड़चन बन जाता है
मानव अधिकारों की रक्षा मानसिक स्वास्थ्य को सहक्रियात्मक रूप से लाभ देती हैं
यह समझ लेना बहुत आवश्यक है कि मानसिक स्वास्थय के बिना उत्तम शारीरिक स्वास्थय प्राप्त कर पाना संभव नहीं है | लम्बे अंतराल में मानसिक समस्याएं अनेक प्रकार कि शारीरिक व्याधियां भी उत्पन्न करती हैं | इस लिए मानसिक और शारीरिक स्वास्थय में भेद करना सर्वथा अनुचित है |
मानसिक रोग को आज भी समाज में एक निषेध विषय माना जाता है , मानसिक रोग से पीड़ित व्यक्तियों के साथ भेद भाव एक सामान्य बात है | उनके विचार , ज़रूरतें एवं समस्याओं को अमान्य घोषित कर दिया जाता है जिसकी वजह से मानसिक रोग से पीड़ित व्यक्ति खुद को अपमानित और कलंकित महसूस करते हैं , उपचार लेने में हिचकिचाते हैं और अपने लक्षणों को भी छुपाते हैं | इस स्थिति को देखते हुए , विश्व स्वास्थय संगठन (W .H O ) ने मानसिक स्वास्थय के लिए वैश्विक मानवाधिकार आपातकाल घोषित किया है और उसके संरक्षण के लिए सभी देशों से आह्वाहन किया है | भारतीय संसद ने भी इस विषय कि गंभीरता समझते हुए मानसिक रोग से ग्रस्त व्यक्तियों के मानवाधिकारों को संरक्षित करने हेतु मानसिक स्वास्थय अधिनियम २०१७ में कई निर्देश जारी किये हैं जिन्हे विभिन्न राज्य अपनी क्षमता अनुसार अनुपालन में ला रहे हैं जिसमे सभी के लिए सुलभ मानसिक स्वास्थय सेवाएं उपलब्ध कराना सर्वोच्च प्राथमिकता है |
हम आशा करते हैं कि शीघ्र ही उत्तम मानसिक स्वास्थय भारत के सभी लोगो के लिए वास्तविकता होगी |
कठोपनिषद के अनुसार
” आत्मानं रथिनं विद्धि शरीरं रथमेव तु
बुद्धिं तु सारथिं विद्धि मनः पग्रहमेव च “
अर्थात इस जीव आत्मा का रथ है शरीर बुद्धि उसका सारथी और मन को लगाम समझिये | यदि बुद्धि और मन सही रूप से कार्य नहीं कर रहे हैं तो शरीर कि कार्य क्षमता निश्चित ही प्रभावित होगी | इसलिए अपने ,मानसिक स्वास्थ्य पे ध्यान देना नितांत आवश्यक है | इसके बिना किसी भी प्रकार का स्वास्थय संभव नहीं है |