नवरात्रि में पूजा, हवन आदि करते हुए भी लोगों को फायदा क्यों नहीं मिल रहा है?

खजाना दिलाने वाले महात्मा जी की कहानी से समझाया भेदी जानकार को खोजो, वो ही अंतर और बाहर सब खजाने दिलवाएंगे

उज्जैन (म.प्र.)अपने अंदर में ही छुपी सार वस्तु का भेद बताने वाले, दुखों को दूर करके, मालिक को याद कराने वाले, मालिक से मिलने का, अंतर में देवी-देवताओं के दर्शन करने का रास्ता नामदान देने वाले, कहानी के माध्यम से गहरी बात समझाने वाले, इस समय के महापुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दीनबंधु दीनानाथ, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी ने 25 मार्च 2023 प्रात: उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि भारत जैसे धर्मपरायण देश में नवरात्र का बड़ा महत्व है। नवरात्र में लोग अपने-अपने तौर-तरीके, सोच के अनुसार पूजा-पाठ, हवन, यज्ञ करते, फूल-पत्ती चढ़ाते हैं। नंगे पांव मंदिर जाने से कंकड़ पत्थर पैर के तलवे में लगने से हुए एक्यूप्रेशर और उपवास से पेट की तकलीफ में आराम आदि मिलता है लेकिन जो असला लाभ मिलना चाहिए, मिलता नहीं है। कारण? भटकाव में समय निकल जाता है। अगर वही समय बचा करके इस मानव मंदिर में सुख शांति को खोजा जाए तो इसी के अंदर खजाना भरा पड़ा है। सब कुछ इसी मनुष्य शरीर के अंदर ही है। अगर कोई जानकार मिले तब तो वह चीज मिल जाए नहीं तो ऐसे भटकना पड़ता है। फायदे की जगह पर कभी-कभी नुकसान भी हो जाता है। करते तो अपने हिसाब से पुण्य हैं लेकिन वही अनजान में पाप बन जाता है और तकलीफ देह हो जाता है। तो जानकार को खोजो। वस्तु कहीं खोजे कहीं, कही विधी आवे हाथ, भेदी लिजे साथ में, वस्तु अपने हाथ। वस्तु कहीं है, खोज कहीं और रहे तो वह चीजें नहीं मिलेंगी। धन, मान-प्रतिष्ठा आदि नहीं मिलती, बीमारियां जड़ से नहीं जाती। कर्मों की वजह से जो सजा, बीमारी, तकलीफ मिलती है, उनमें फायदा नहीं होता है। उसका कारण यही है कि वस्तु कहीं है और खोज कही और रहे हो।

जमींदार के गढ़े छुपे खजाने को खोजने वाली कहानी से समझाया

एक जमीदार था, जमीन-जायदाद, रुपया-पैसा भी बहुत था। सोचा इकलौता लड़का हमारी तरह से मेहनत नहीं कर पा रहा है तो यह जमीन जायदाद को बढ़ाने में या जितना है उतना रोक पाने में कामयाब नहीं होगा। तो इसके (बुरे वक़्त के लिए) कुछ धन रख देना चाहिए। तो (जमीन में गाढ़ कर कुछ) धन रख दिया और एक ताम्रपत्र (कागज का आविष्कार बाद में हुआ) पर लिखा- कर विचार बजे चार ही, नैनन निरख निहार, शिवालय के शिखर पर, माल गढ़ो है सार। वही पर एक शिवालय मंदिर था। उसी के आधार पर लिखा और लड़के को भी बताया कि जरुरत के समय मंदिर और ताम्रपत्र से तू धन को निकाल लेना। लड़का बोला, ठीक है। रख लिया। कुछ दिन के बाद, जैसे इस दुनिया का नियम है- जो आता है उसको दुनिया छोड़कर जाना, मृत्यु लोक को, काया कुटी को खाली करना पड़ता है। तो जमींदार का अंत समय आ गया, सांसों की पूंजी खत्म हो गई, शरीर छूट गया। कुछ दिन के बाद वही हुआ। लड़के की हालत खराब। आलस्य आदमी का दुश्मन होता है। किसी भी मामले में, चाहे कमाने खाने, चाहे भजन भाव भक्ति के मामले में हो, आलस्य दुश्मन होता है। आलस दुश्मन लड़के पर सवार हो गया। पिता का इकठ्ठा धन खत्म हो गया। सोचा ताम्रपत्र से धन खोज लिया जाए। उसने अर्थ लगाया कि शिवालय के शिखर यानी गुंबद पर पिताजी ने माल रखवा दिया है, सुबह चार बजे तोड़ेंगे तो मिलेगा। गुंबद तुड़वा दिया। दीवाल, बुनियाद तक खुदवा दी, कुछ नहीं मिला। शिवालय का नामोनिशान खत्म कर दिया। निराश हो गया। सोचने लगा ताम्रपत्र गलत है। माता-पिता, गुरु किसी को धोखा नहीं देते हैं। अपने बच्चे प्यारे ही होते हैं। बच्चा कितना भी खराब हो जाए लेकिन मां, पिता का प्यार उसके प्रति वैसा ही रहता है, जैसे बचपन में था। सोचता रहता कि पिता धोखा नहीं देंगे, कोई बात होगी।

भेदी जानकार महात्मा जी ने दिलाया खजाना

एक महात्मा जी थे। महात्मा का काम क्या होता है? चलते-फिरते रहना, उपदेश करते रहना, लोगों को समझाते-बताते रहना। तो महात्मा जी उस गावं पहुंचे। पूछे शिवालय कहां चला गया? लोग बोले धन के लालच में जमींदार के लड़के ने गिरा दिया गया। लड़का सारी बात बताया। बोले ताम्रपत्र लाओ। पढ़कर महात्मा जी बोले, अरे गजब कर दिया। यदि तू धन चाहता है तो फिर उसी नाप-तौल का मंदिर इसी जगह पर बनवाना पड़ेगा। तो लड़के के पास मंदिर का रिकॉर्ड लिखा-पढ़ी में था। जब मंदिर बन जाए तब मुझे बुलाना, मैं तेरा धन दिलवा दूंगा। अब इधर-उधर से अपना इंतजाम, कर्ज करके जमींदार के लड़के ने मंदिर फिर से बनवा दिया। महात्मा जी को बुलवाया। आये तब कहा, शाम को चार बजे गुंबद की परछाई जिस स्थान पर पड़े, वहां खुदाई करो, धन मिलेगा। जब किया तो बहुत धन खजाना मिल गया। ऐसे-ऐसे हीरे मोती, कीमती चीज मिल गई कि इन सिक्के, रूपयों, तांबा, पीतल, चांदी की उन हीरे के सामने कीमत कुछ भी नहीं रह गई। वो जिस सोने को सबसे कीमती चीज समझता था, उससे भी कीमती चीज उसको मिल गई। तो जब खुदवा दिया, धन उसको मिल गया, तब उसके समझ में आया कि भेदी लीजिए साथ में, वस्तु आवे हाथ। जब तक जानकार नहीं मिलता है, तब तक कुछ नहीं हो पाता है। (इसी मनुष्य शरीर के) अंदर वो अनमोल खजाना भरा हुआ है जिसके आगे हीरे, मोती, जवाहरात सब बेकार है। तो पूरे भेदी की खोज करनी चाहिए और वो अनमोल खजाना प्राप्त करना चाहिए।

कौन अंतर के खजाने को खोजने में मदद करते हैं?

अंतर का भेद, अंतर में खजाना, सुख शांति कहां है? यह जो आदमी दौड़ता रहता है, इसकी दौड़ कब कम होगी? इसका भेदी कौन होता है? इसके भेदी गुरु होते हैं। जो हमेशा धरती पर रहते हैं। मनुष्य शरीर में ही रहते हैं। लोगों को चल-फिर करके बताते, समझाते, दुखों को दूर करके, मालिक को याद कराते हैं। मालिक से मिलने का, अंतर में देवी-देवताओं के दर्शन करने का रास्ता बताते हैं। रास्ता ही नहीं बताते, मदद भी करते, अंतर में भी लोगों को मिलते हैं। अंतर में अभी भी आपको मिलेंगे। आप अपने मन की दौड़ को रोक ले जाओ। कहा गया है- जैति लहर समुद्र की तैति मन की डोर, मन रुका स्थिर हुआ वस्तु ठौर की ठौर।

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