जैसे कृष्ण गोपिकाओं को अंदर में दिखाई पड़ते थे, ऐसे ही ध्यान लगाने पर गुरु एक साथ अंदर में करोड़ों लोगों को दिखते हैं
रेवाड़ी (हरियाणा)सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी, सर्व समर्थ, सर्वत्र विराजमान, जिनके रूप में प्रभु अभी स्वयं धरती पर अवतरित है, भक्तों को अंदर में एक साथ दर्शन देने वाले, ऐसे इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि एक बार हजरत निजामुद्दीन के भक्त मुरीद ने पूछा आपके यहां जो लोग आते हैं, क्या सबको निजात, मुक्ति-मोक्ष मिल जाएगी? सब दोजख नरक से बच जाएंगे? तब उन्होंने कहा जिनको खुदा भगवान प्रभु पर विश्वास है वह दोजख जाने से बच जाएंगे नहीं तो उनको निजात नहीं मिलेगी। अगर वो जिस्म शरीर पर विश्वास है, केवल उसे को मानते, पूजते हैं तब तो धोखा है।
गुरु का रूप अंदर में देखा नहीं, तो गुरु के शरीर से प्रेम करो
इसलिए कहा जाता है- मन तू भजो गुरु का नाम। गुरु ने जो नाम दिया, उसको भजो, गुरु से प्रेम करो। गुरु के रूप को अंदर में देखा नहीं इसलिए गुरु के शरीर से प्रेम करो, गुरु के आदेश का पालन करो। आप यह सोचो कि गुरु हमको पार कर देंगे, हमको कुछ करना ही न पड़े तो कैसे पार कर देंगे? तो यह बड़ा कठिन काम है। कितनों को गुरु पार करेंगे? सवाल तो यह है कि गुरु के बताए रास्ते पर हम और आप चल कहां पाते हैं? इस मोह माया के सागर में, इंद्रियों के विषयों में डूबने लग जाते हैं तब गुरु के आदेश का पालन कर कहां कर पाते हैं? गुरु का रूप अंदर में जब दिखाई पड़ जाए तब मान लेना चाहिए कि आज हमको गुरु दिखाई पड़ गए हैं। कल खुदा को भी दिखला देंगे, हक प्रभु उनसे भी मिलवा देंगे। लेकिन अंदर में अगर गुरु का रूप दिखाई नहीं पड़ा तब तो बड़ा मुश्किल है।
पांच में से चार पांडवों को ज्ञान भान नहीं था कि कृष्ण है कौन
गुरु मनुष्य शरीर में ही इस धरती पर रहते हैं लेकिन जब अंदर में ध्यान लगाते हैं, गुरु का दर्शन करते हैं, करोड़ों लोगों को गुरु एक साथ दिखाई पड़ते हैं। गोपिकाओं को जब इसका ज्ञान हो गया था तब सभी गोपीकाएं, कृष्ण का अंदर में दर्शन करती थी। पांच में से चार पांडवों को ज्ञान भान नहीं था कि कृष्ण है कौन। जब कृष्ण ने अंदर में अपना रूप ताकत दिखाया, महाभारत पहले ही दिखा दिया तब अर्जुन को इसका ज्ञान हो गया था कि कृष्ण का केवल शरीर ही नहीं है, अंदर में दूसरा रूप है, ये कृष्ण लोक से आए हैं, यह ऊपर से, ब्रह्म स्थान से आए हैं। इसलिए कहा गया- गुरु मोहे अपना रूप दिखाओ, अंदर का रूप दिखाओ।
जब तक गुरु प्रभु अंदर में दिखाई नहीं पड़ेंगे कोई गारंटी नहीं कि नाम दान ले लेने से, सतसंग में आने-जाने से पार हो जाओगे
अब गुरु का रूप कैसे दिखाई पड़ेगा? गुरु के बगैर आगे जा नहीं सकता, बढ़ नहीं सकता। गुरु बिन हरी कैसे मिले, सोच समझ मन माहि।। गुरु का ध्यान पहले लगाया जाता है। गुरु का रूप देखने के लिए अंदर में प्रार्थना किया गया और गुरु दिखाई पड़ गए तो वो प्रभु से मिलवा देंगे। जब तक वो प्रभु नहीं नहीं दिखाई पड़ेगा मिलेगा तब तक कोई गारंटी नहीं है कि नामदानियों, नामदान ले लेने से, सतसंगों में आने-जाने से मुक्ति हो ही जाएगी। इसलिए कहा गया है- भजन ध्यान सुमिरन बराबर करते रहो।