भारत में मानवाधिकार का इतिहास काफी पुराना है: पन्ने लाल यादव
धनंजय पाण्डेय
कुशीनगर।ऑल इंडिया ह्यूमन राइट्स आर्गनाइजेशन के संस्थापक/महासचिव पन्ने लाल यादव ने पत्रकार वार्ता में बताया कि मानवाधिकार वह मौलिक एवं अन्य संकाम्य अधिकारी है जो मनुष्य जीवन के लिए आवश्यक है।मानवाधिकार तथा मौलिक स्वतंत्रताएं हमें अपने गुणों ज्ञान प्रतिभा तथा अंतर विवेक का विकास करने में सहायक होता है।
जिसमें हम अपनी भौतिक अध्यात्मिक तथा अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति एवं संतुष्टि कर सके।इस प्रकार मानवाधिकार वह अधिकार है जो हमारी प्रकृति में अन्तर्निहित है तथा जिनके बिना हम मनुष्य की भांति जिवित नहीं रह सकते। मानवाधिकारो को मूल या नैसार्गिक अधिकार भी कहते हैं, क्योंकि इसे किसी विधायी शक्ति या सरकार द्वारा छीना नहीं जा सकता। मानवाधिकार एवं मूलाधिकार विधि की महत्वपूर्ण अवधारणाएं है।मानवाधिकार मूल अधिकार से जुड़ा हुआ एक महत्वपूर्ण विषय है मानवाधिकार का संरक्षण आज विश्व के समक्ष एक बहुत बड़ी चुनौती है।मूल अधिकार एवं मानवाधिकार सम्मानपूर्ण एवं अर्थपूर्ण जीवन का आवश्यक अंग है। मानवाधिकार कोई नई अवधारणा नहीं है। वैदिक युग में भी मानवाधिकार का अस्तित्व था प्लेटो एवं अन्य दार्शनिकों ने भी अपनी कृतियों में मानवाधिकारों महत्वपूर्ण स्थान दिया है। मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम सन् 1933 में एक नई किरण का संचार हुआ। सभ्यता की शुरुआत से ही भारतीय मनीषियों ने सर्वकल्याण और सर्वहित कामना के बारे में सोचना शुरू कर दिया था। जैसे जैसे सभ्य होता चला गया वैसे वैसे दार्शनिक चिंतन की शुरुआत हुई।इसी चिंतन के फलस्वरूप हर मनुष्य का कुछ जन्म सिद्ध अधिकार और कर्तव्य का निर्धारण हुआ समुह या व्यक्ति के पूर्ण विकास के लिए यह महत्वपूर्ण हो गया है।कि प्रत्येक व्यक्ति परिवार और समाज के लिए अपने कर्तव्यों का पालन करें और एक-दूसरे के अधिकारों की रक्षा का दायित्व अपने उपर ले।भारत के दार्शनिकों ने इन अधिकारों और कर्तव्यों की व्याख्या देश-काल के अनुरूप अलग अलग तरीके से की और मनुष्य के जीवन में इसके अस्तित्व की उपस्थिति से किसी को इंकार भी नहीं था।इसी तरह भारत में मानवाधिकार का इतिहास काफी पुराना है।इन मानवाधिकारों की खोजबीन में भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी सत्यनारायण साबत ने पर्याप्त श्रम किया है।