सन्त बाबा उमाकान्त जी ने बताई कलयुग में आत्म के कल्याण की सबसे सरल पूजा, साधना
अमरेली (गुजरात)बाहरी जड़ पूजा-पाठ से बहुत उपर, जीते जी मुक्ति मोक्ष पाने, शिव नेत्र खोलने, देवी-देवताओं का दर्शन पाने का रास्ता पांच नाम का अमोलक नामदान देने के धरती पर एकमात्र अधिकारी, इस समय के महापुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 2 दिसंबर 2022 प्रातः बावल आश्रम, रेवाड़ी (हरियाणा) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि नामदान लेने के लिए आपको घर, जमीन-जायदाद, बाल-बच्चों किसी को नहीं छोड़ना रहेगा। आप अपने रहन-सहन में बदलाव ले आओ। आपका जो ऐश-आराम का जीवन है, उसमें थोड़ी तबदीली ले आओ। देर तक सोते हो, जल्दी सोने की आदत डालो। दो रोटी दबाकर (ज्यादा) खाते हो तो एक रोटी का भूख रख करके खाओ जिससे आलस्य नींद न आवे, पचाव भी हो जाए, (सुबह) जल्दी आंख खुल जाए, उठ जाओ तो यह सब थोड़ा सा और स्वभाव में भी बदलाव लाने की जरूरत है। झूठ, फरेब, बेईमानी को छोड़ने की आवश्यकता है। मेहनत और ईमानदारी की कमाई पर भरोसा करो। गुरु को याद करोगे तो आपको गुरु की दया उसमें मिलेगी। थोड़े में ही आपको बरकत मिल जाएगी तो काम चल जाएगा। अभी ज्यादा कमाते हो तो बरकत नहीं मिलती है, हाय-हत्या लगी रहती है। तो इस बात को मैं आपको बता रहा हूं।
संस्कार का प्रभाव
महाराज जी ने 5 दिसंबर 2022 शाम बावल में बताया कि संस्कार अच्छे होते हैं तभी धनी मानी लोगों के घर में जन्म लेते हैं। स्वर्ग, बैकुंठ की जो उतरी हुई आत्माएं होती है वो राजा महाराजाओं, सेठ साहूकार, पंडित, मुल्ला, पुजारी, मठ के मठाधीश आदि के यहां जन्म लेते हैं और मठाधीश वगैरह बना दिए जाते हैं। (एक प्रसंग सुनाते हुए महाराज ने बताया कि) एक बार महात्मा जी उधर से आ रहे थे, जानकार, पहुंचे हुए थे। बोले, संस्कार तो इस (जीव) के अच्छे हैं और हमारा काम है नरकों से जीवों को बचाना। लेकिन इसके कर्म ऐसे हैं तो बेचारा फंस जाएगा, नरकों में जाना पड़ेगा। तो दया कर दिया। दया भाव होता है। जो पूरे सन्त होते है, दया धर्म का पालन करते हैं।
आत्मबल का प्रभाव
महाराज जी ने 27 नवंबर 2022 प्रातः बावल में बताया कि देखो जो गांव, समाज का मुखिया बनने लायक है, यदि वह कहे कि हम प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति बन जाएंगे, देश को चलाएंगे तो उसके अंदर वह गट्स (धेर्य, चरित्रबल, द्रढ़ता आदि) बहुत समय में आएंगे। तब तक समय निकल जाएगा। इसीलिए संगत में जो है, (सेवादार) उसी में (अपने जानकारी वाले क्षेत्र में) तरक्की करें। और संगत में जो सेवा करता है उसी की इज्जत, महत्व रहता है। कौन सी सेवा? अपने शरीर की सेवा करते हुए दुसरे को खिलाना। अपने शरीर को गर्मी-ठंडी से बचाना, खिलाना आदि इसकी सेवा ही तो है। तो जो इसकी सेवा करते हुए दूसरों की सेवा में लगा रहता है, जो दूसरों के लिए करता है, उसकी कीमत रहती है। शरीर की सेवा अलग होती और आत्मा की सेवा अलग होती है। जो पहले अपनी आत्मा की सेवा करता, जगाता, संतुष्ट करता, पहले अपने मन को मारता, मन पर अंकुश प्राप्त करता है उसके बाद में दूसरे का कराता है तो उसका महत्व बढ़ जाता है। आत्म धन के सामने धनी मानी भी फीके पड़ जाते हैं, महसूस भी करते हैं। किसी के पास आत्मबल शक्ति है तो वह कोई बात कहता है तो दूसरा मान लेता है। कोई बात कह दिया, वह सत्य हो गया, तो वो उसका मुरीद हो जाता है चाहे बड़े धनी हो या बड़े विद्वान हो। सतसंगी सेवादारों को यह पता नहीं चलता है कि हमारे अंदर क्या ताकत (शक्ति) है, गुरु कब हमको क्या ताकत (दया) दे करके आगे बढ़ा देंगे, इसका पता उनको नहीं चलता है। कभी-कभी जिनको छोटे लोग, सेवक, सेवादार कहते हो, यह बड़े-बड़े विद्वानों को ऐसी बात बोल देते हैं कि रात भर बैठे रह जाता है, वहीं आग के पास बैठकर की रात गुजार देते हैं।
सबसे सरल पूजा, साधना
महाराज जी ने 30 जनवरी 2021 दोपहर अमरेली (गुजरात) में बताया कि नामदान दूंगा। जो साधना अब बताऊंगा उसमें कोई नियम ऐसा नहीं है कि नहाना, धोना, कपड़े बदलना, फूल पत्ती लाना, दिया-चिराग जलाना, प्रसाद भोग लगाना ही रहेगा। यह सब कुछ नहीं। सबसे सरल साधना, चेतन जीवात्मा से उस चेतन (प्रभु) को याद करने की यह पूजा है। आप आराम से सीखो। कोई भी कर सकता है। चाहे कोई स्त्री हो, पुरुष हो, चाहे सात-आठ साल का बच्चा हो, सब कर सकते हैं। हमारे यहां तो कोई भेदभाव नहीं है। हम तो इंसान और इंसानियत, मानव, मानवता, मानव धर्म की बात करते हैं। हमारे गुरु महाराज के पास भी कोई भेदभाव नहीं था। उनके पास हर तरह के लोग जाते थे, गरीब भी, अमीर भी, बड़े-बड़े नेता, मंत्री, मुख्यमंत्री आदि सब जाते थे। हमारे पास भी आते है। हमारे पास भी देश के गृहमंत्री, प्रदेश के मुख्यमंत्री, अन्य प्रदेशों के मुख्यमंत्री और आपके बड़े-बड़े हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट के जज हमारे पास भी आते हैं। कहते हैं, हमारा काम, जो हम कर रहे हैं, जिनको साधु-महात्मा आप जो भी कह लो वह गरीबों के, छोटे लोगों के तो होते ही हैं, क्योंकि जिसके कोई नहीं होता है उसका कहते हैं मालिक होता है। मालिक की पहचान जिनको होती है, सबके ऊपर उनकी नजर होती है, वो सबकी भलाई चाहते हैं। हर तरह के लोग हमारे पास आते हैं। हम यह नहीं कहते कि आप जहां खाते हो वहाँ न खाओ। जहाँ समाज में, जिस बिरादरी में आप खाते हो, वहीं खाओ, वहां शाकाहारी भोजन करो और लड़का-लड़की का ब्याह जहां करते हो वहीं करो, हमारी तरफ से ऐसी कोई बात नहीं है।