मांसाहारी दवाई मत खाना, कर्म फल भोगना पड़ता है
गोंडा (उ.प्र.)इस वक़्त के महापुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बताया कि जग में जयगुरुदेव का झंडा लहर लहर लहराएगा, वह समय आ जाएगा। महापुरुषों का काम अधूरा नहीं रहता है। उनका संकल्प पूरा हो जाता है। गुरु महाराज कहा करते थे कि हमको जरूरत पड़ेगी तो भूतों से काम ले लेंगे। गुरु महाराज ने काशी में यज्ञ किया था। सन्तमत में कोई यज्ञ नहीं। कलयुग योग न यज्ञ न ज्ञाना, एक आधार नाम गुण गाना। यह जो नामदान दिया जाता है, केवल नाम सुमिर सुमिर कर नर पार उतर जाता है, बाकी कुछ करने की जरूरत ही नहीं है। लेकिन जब मदारी या कोई दवा विक्रेता आता है तो आवाज लगता है, बाजा डमरू बजाता है फिर जब लोग इकट्ठा हो जाते हैं तब मदारी अपना खेल करतब दिखाता है, विक्रेता अपनी दवा का प्रचार करता है, एक-दो शीशी फ्री में बांट देता है फिर उसके बाद उसका पैसा लेता है। कहने का मतलब यह है कि अपना मिशन पूरा करने के लिए उपाय करना पड़ता है। तो गुरु महाराज ने यज्ञ किया। उसमें बहुत से लोग आए जो यज्ञ के प्रेमी थे। और जब उन्होंने सतसंग सुना तब कहा कि असली चीज तो यह (नामदान) है, जो बाबा जी दे रहे, बता रहे हैं तो इसको ही क्यों न पकड़ा जाए। इसको अगर पकड़, ले लिया जाए तो यह तो ऐसी चीज है कि हर जगह काम आएगी। इसी से लोक और परलोक दोनों बन जायेगा। तो बहुत से लोग यज्ञ में गए और यज्ञ के माध्यम से जुड़ गए। यह बंदा जो आपके सामने बैठा है (स्वयं परम पूज्य बाबा उमाकान्त जी महाराज) उसी महामानव यज्ञ में हरिद्वार में गया था, जब गुरु महाराज ने यज्ञ किया था। तो अब आप यह सोच लो, वो तो एक बहाना, माध्यम था। एक ही बार प्रचारक हमारे यहां आए थे। वही बात हमारे समझ में आ गई थी और मैं भी वहां चला गया था। तो ऐसे ही होता है। तो गुरु महाराज ने यज्ञ किया था और यज्ञ में कहा था कि अभी तुमने क्या देखा है, अभी तो यह छोटी-छोटी मछलियां पकड़ में आ रही, आगे ऐसा जाल फैलाऊंगा कि बड़े-बड़े मगरमच्छ आएंगे। जाल क्या है? यह जगत जाल से आप निकल कर (सतसंग में) चले आए तो यह जाल काट कर आए। तो अब इस समय पर इसका विस्तार की जरूरत है। उसके बाद गुरु महाराज द्वारा भूतों से सेवा लेने वाला बड़ा ही रोचक प्रसंग बताया।
मांसाहारी दवाई मत खाना
मांसाहारी दवाई मत खाना। एक साधक था, जब उसके प्राण निकलने को हुआ तो अपने साथ अंदर में ले जाने के लिए गुरु आकर के खड़े हो गए। उन्हें देखकर बहुत खुश हो गए। तब तक घर का आदमी कोई मांसाहारी दवाई मुंह में डाल दिया। गुरु मुंह फेर लिए और उधर चले गए। बोले अरे! अब तो इसका शरीर गंदा हो गया। इसको तो कर्मों की सजा अब इसी से भोगनी पड़ेगी। तीन दिन तक तड़पते रहे, मृत्यु ही नहीं हुई। जब तड़पने की वजह से वह कर्म कटे तब गुरु आकर के लेकर के गए। ज्यादा दिन भोगना था, लेकिन गुरु ने इतनी दया किया की तीन दिन में ही उसको भुगतवा करके फिर लेकर के गए। क्योंकि लौट-लौट चौरासी आया, कर्म भोगने की वजह से चौरासी में जन्म लेना पड़ता है। कर्म (की वजह से) ही तो (यहां) रह गए नहीं तो सब पार हो जाते। मनुष्य शरीर कर्मों को भोगने के लिए ही मिला है।