सरल हृदय की साधना से परमपिता से मेल का एकमात्र साधन – राजेंद्र दास महाराज

भागवत कथा के पांचवें दिन भक्त ध्रुव व प्रहलाद कथा का हुआ वर्णन

कथा सुनने को उमड़े हजारों भक्तों की भीड़, भंडारे में देर रात तक चखते रहे प्रसाद

आर पी यादव ब्यूरो चीफ यू पी फाइट टाइम्स

कौशाम्बी। जिले के चरकमुनि स्थल चरवा में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के पांचवें दिन श्रीमद् जगतगुरु द्वाराचार्य मलूक पीठाधीश्वर श्री राजेंद्र दास देवाचार्य जी महाराज ने महाराज ध्रुव व महाराज प्रहलाद के कथा का वर्णन किया कि कैसे इन दोनों पुरुषों ने सरल हृदय से हम पिता को पिता ने दोनों को मिलकर परम पद दिया जिनका आज भी इतिहास हुआ धर्म ग्रंथो में उल्लेख रहता है।

इस मौके पर कथा को सुनते हुए बताया कि मनु और शतरूपा के दो पुत्र और तीन पुत्रियां हुईं। पुत्रों के नाम प्रियव्रत और उत्तानपाद। राजा उत्तानपाद की दो रानियां थीं। एक का नाम सुरुचि और दूसरी का नाम सुनीति था। राजा सुरुचि को अधिक प्यार करते थे। उनके पुत्र का नाम उत्तम और सुनीति के पुत्र का नाम ध्रुव था। बालक ध्रुव एक बार पिता की गोद में बैठने की जिद करने लगता है लेकिन सुरुचि उसे पिता की गोद में बैठने नहीं देती है। ध्रुव रोता हुआ मां सुनीति को सारी बात बताता है। मां की आंखों में आंसू आ जाते हैं और वह ध्रुव को भगवान की शरण में जाने को कहती हैं। पांच वर्ष का बालक ध्रुव राज्य छोड़कर वन में तपस्या के लिए चला जाता है। नारद जी रास्ते में मिलते हैं और ध्रुव को समझाते हैं कि मैं तुम्हें पिता की गोद में बैठाउँगा लेकिन ध्रुव ने कहा कि पिता की नहीं अब परम पिता की गोद में बैठना है। कठिन तपस्या से भगवान प्रसन्न हो वरदान देते हैं। इसी तरह उन्होंने भक्त प्रहलाद की कथा सुनाते हुए कहा कि पिता अगर कुमार्ग पर चले तो पुत्र का कर्तव्य है उसे सही मार्ग पर लाए। तमाम विपरीत परिस्थितियों के बाबजूद प्रहलाद ने भक्ति का मार्ग नहीं छोड़ा। भगवान ने नरसिंह रूप में अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध कर अपने परमधाम को पंहुचाया। भक्त प्रहलाद को भी परमपिता ने अपने चरणों पर स्थान दिया।

इस मौके पर उन्होंने सीधे मौजूद श्रद्धालुओं से बात करते हुए कहा कि महाराज जी ने माता देवहूति व भगवान कपिल देव के संवाद को सुनाया। उन्होंने कहा कि एक साधु के क्या लक्षण होते हैं श्रीमद्भागवत कथा सुनने से पता चलता है। आज के समय में बहुत से लोग साधु बनकर लोगों को धोखा देते हैं। इससे लोगों को सच्चे साधु तथा महापुरुषों से विश्वास उठ गया है। ऐसा नहीं है कि संसार में सच्चे साधु नहीं हैं। हमें साधु की पहचान होने चाहिए। उन्होंने कहा कि श्रीमद्भागवत महापुराण में जो साधु के लक्षण लिखे हैं उन्हीं से साधारण व्यक्ति को भी पता चल जाएगा कि सच्चा साधु कौन होता है। सच्चा साधु हमेशा सहनशील, दयावान, क्षमाशील, दूसरे के दुख को देखकर दुखी होता है। इसके बाद भगवान शिव का विवाह व ध्रुव चरित्र का भी व्याख्या किया। कथा को सुनने के लिए जिले के साथ फतेहपुर, प्रतापगढ़ का प्रयागराज जनपद से हजारों हजार भक्तों ने पहुंचकर महाराज जी की कथा को सुना। देर रात तक चले भंडारे में लोगों ने प्रसाद ग्रहण किया।

आज श्री मद्भागवत कथा महोत्सव के मुख्य श्रोता श्री बरम बाबा महाराज, श्री धनंजय दास जी महाराज के सहित, निर्वाणी अखाड़ा के महन्त श्री यमुना गिरी जी महाराज प्रयागराज, श्री गऊ घाट वाले महाराज श्री ( श्रृंगवेरपुर धाम) श्री फलाहारी बाबा (प्रयागराज) श्री सेलरहा बरम बाबा महाराज , वीरेन्द्र कुमार मिश्र(जिला जज) कौशाम्बी, बिजेंद्र कुमार श्रीवास्तव ( sp Kaushambi) श्री देव कृष्ण नारायन ( co chayal) विनोद कुमार सिंह ( So Charwa), हिंदू जागरण मंच के जिला अध्यक्ष अवधेश नारायण शुक्ल, वेद प्रकाश पाण्डेय सत्यार्थी आदि उपस्थित रहे।

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