सन्त उमाकान्त जी ने खोला चक्रों का भेद, चक्रों के भेदन से देवी-देवताओं की केवल परछाई दिखती है और दिव्य द्रष्टि खुलने से होता है साक्षात दर्शन

उज्जैन (म.प्र.)पिछले युगों की तुलना में कलयुग में हर तरह से कमजोर मनुष्य को भवसागर पार करने के लिए पिछली कठोर साधनाओं को खारिज कर अब सबके करने लायक सुरत शब्द नाम योग साधना का सरलतम रास्ता बताने वाले सन्त वंशावली के इस समय के जीते जागते पूरे समरथ सन्त सतगुरु, नामदान देने के एकमात्र अधिकारी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 25 अक्टूबर 2020 दोपहर उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि पहले लोग सिद्धि करते थे, चक्रों को रोकते थे। चक्र का भेदन करने, रोकने पर, प्राणों को खींचने पर चक्र रुकते हैं और देवता नीचे दिखाई पड़ते हैं। जीवात्मा की ताकत से ही ये चक्र चलते हैं। निचले चक्र से उपरी चक्रों को नहीं देखा जा सकता लेकिन उपर से नीचे का दिखता है। मन को रोक कर सन्त मत की साधना करने वाले, जो साधना आज्ञा चक्र से शुरू करते हैं उन्हें नीचे के ये सब दिखाई पड़ते हैं।

गुदा चक्र रुकने पर लाल रंग वाले कुछ दल (पत्ती) कमल जिस पर गणेश जी की रौशनी प्रकाश पड़ता है उसमें वो (अक्स, परछाई) दिखाई पड़ जाते हैं। उनका स्थान तो जीवात्मा के स्थान पिंडी दसवां द्वार के आगे है। और आदमी में गणेश जी की ताकत का इजहार, त्याग आ जाने के रूप में होता है, दुनिया कि हविश ख़त्म हो जाती है। वहीं पर उसी कमल पर उनकी पत्नी रिद्धि-सिद्धि, पूर्व दिशा में देवताओं के राजा इंद्र और इंद्राणी (उनकी पत्नी शचि), उत्तर दिशा में कुबेर, (व्यापारी धनतेरस पर इनके लिए लिखते हैं)। रिद्धि सिद्धि देती हैं और कुबेर चीज (धन आदि) को रोके रखते हैं। उपरी चक्रों पर पहुँचने पर वो इच्छा शक्ति बढ़ती जाती है – जो इच्छा किन्ही मन माहि, हरी प्रताप कछु दुर्लभ नाही। गुदा चक्र रुकते ही देवता, इंद्र और इंद्राणी भी सहाय हो जाती हैं। वहां हम मानव के जीवन का हिसाब रखने वाले चित्रगुप्त और यमराज भी मिलते हैं। वहां क्लीं की आवाज होती रहती है।

उसके उपर इन्द्रिय चक्र है। पीले रंग के कई दल कमल का है। उस पर ब्रह्मा, सावित्री, गायत्री और सरस्वती बैठे हैं। इस स्थान पर पहुँचने पर साधक बहुत ज्ञानी हो जाता है। सरस्वती की लोग पूजा करते हैं कि बुद्धि तेज हो जाए। क्रीम ब्रेन। जैसे कहते हैं कि 400 में से 400 नंबर ले आया, ब्रिलियंट आदमी है। आईएएस कॉम्पिटीशन में पूछे गए सभी प्रश्नों के इतने सटीक जवाब दिए कि इंटरव्यू लेने वाला भी सोचने लगा कि इस तरह का जवाब तो हमें भी नहीं मालूम था। उस स्थान पर वेद की ध्वनि, आवाज बराबर सुनाई पड़ती है। वहां पहुँचने पर सभी अक्षरों, भाषा, वेद का ज्ञान हो जाता है।

नाभि चक्र पर नीले रंग के कई दल कमल पर बैठे विष्णु-लक्ष्मी का दर्शन होता है और हीं की आवाज आती है। ॐ हीं क्लीं चामुंडायै विच्चे नमः जो ये मंत्र बताते हैं, ये आवाज वहीं से निकलती है। इन मंत्रों को जपोगे तो जहां से आवाज आ रही है वो आवाज वहां से तुम्हारे पकड़ में आ जायेगी और जपते-जपते, याद करते-करते वो सुन लेते हैं तो खींच करके ले जाते हैं। ऐसे ही आपको बताई गयी साधना में धनियों का सुमिरन जब आप करते रहोगे, मन को उनकी तरफ लगाओगे, उनका ध्यान लगाओगे तो आवाज वहां पहुंच जाएगी। इसे कहते हैं- मंत्र जपते-जपते सिद्धि प्राप्त कर लिया। तो यह मंत्र उन्होंने बनाया है जिन्होंने उन आवाज को सुना है। बहुत से लोग क्लीं-क्लीं कहते हैं, कोई ओम क्लीं कहते हैं, कोई आनलाइन बताते हैं कि यह मंत्र है, इसको जपो। जो इसमें लग जाते हैं, जो मन को लगा देते हैं, सुनवाई हो जाती है, उनको फायदा भी हो जाता है। लेकिन केवल बीमारी-तकलीफ में, और दुनिया की चीजों को पाने में ही फायदा होता है। दुनिया की चीजों में फंसना नहीं है। यह सब नाशवान है। उतना ही काम करना है जिससे शरीर स्वस्थ रहें, खाने के लिए अन्न, तन ढकने के लिए कपड़ा, रहने के लिए मकान हो और आपके आश्रित बच्चे परिवार का पालन-पोषण होता रहे। तो आगे की जानकारी जिन (साधकों) को रहती है वह इसमें नहीं फंसते हैं। नहीं तो बाकी यही समझते हैं कि मनुष्य इसीलिए पैदा हुआ है कि खाओ, बच्चे पैदा करो, बच्चों की, समाज की सेवा करो और दुनिया से चले जाओ।

इसके आगे पीले रंग के समान रंग के हदय चक्र पर कई दल कमल पर बैठे शिव-पार्वती का दर्शन होता है। उसके आगे कंठ चक्र है- आद्या महाशक्ति का स्थान। इसके ऊपर में आज्ञा चक्र है। वो दो दल कमल का है। वहां पर शरीर को चलाने वाली जीवात्मा बैठी हुई है जिसमें तीसरी आंख, दिव्य दृष्टि है। उसके खुलने पर जो देवता नीचे दिखाई पड़ते हैं, वो ऊपर बिल्कुल साक्षात दिखाई पड़ते हैं। जैसे यह सूरज असली सूरज नहीं है। इस सूरज में बड़ी गर्मी है और वह सूरज अलग ही है। असली रवि तो वही है। इसी तरह से यहां पर छाया के रूप में (देवी-देवता) दिखाई पड़ जाते हैं। जैसे टीवी मोबाइल में असली व्यक्ति नहीं, परछाई रहती है। इसी तरह से देवताओं की परछाई इन चक्रों पर दिखती है और दिव्य द्रष्टि खुलने पर साक्षात दिखते हैं।

आपको कितना (विस्तार में) बताया जाए, आज समय कम है। ये सब साधना तो पहले की थी जब आयु हजारों वर्षों की होती थी। अब तो आपको एक सरल साधना (नामदान) बता दी जायेगी। उसी से सब हो जायेगा। जैसे सीढियों से जाने की बजाय लिफ्ट से चले जाओ। सीधे आपको पहुंचा दे तो वो नियम से बाहर हो जायेगा तो आपको थोड़ी मेहनत करनी पड़ेगी। तो वक़्त के पूरे समरथ सन्त सतगुरु को खोजो।

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