बृजेश कुमार की रिपोर्ट
नई दिल्ली:
ड्रोन फेडरेशन ऑफ इंडिया (DFI), जो कि ड्रोन उद्योग का एक प्रमुख संगठन है, वर्तमान में गंभीर आरोपों के चलते जांच के दायरे में आ गया है। आरोप है कि DFI ने फर्जी हस्ताक्षर और दस्तावेज़ों में हेराफेरी कर धोखाधड़ी की है। एक शिकायतकर्ता ने नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) में शिकायत दर्ज कर इस भ्रष्टाचार की गहन जांच की माँग की है।
DFI पर आरोप लगाया गया है कि इस संगठन ने DGCA के पूर्व महानिदेशक श्री अरुण कुमार के फर्जी हस्ताक्षर का उपयोग किया और DGCA के आधिकारिक लेटरहेड का दुरुपयोग किया। कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय (MCA) को दिए गए आवेदन में दावा किया गया है कि DFI ने इस जालसाजी के जरिए अनैतिक लाभ प्राप्त करने का प्रयास किया है।
आरटीआई एक्टिविस्ट तेज प्रताप सिंह, जो इस मामले की जाँच की माँग कर रहे हैं, ने कहा, “पिछले कई महीनों से मैं भ्रष्टाचार और फर्जी हस्ताक्षर के मामले की जाँच की माँग कर रहा हूँ। आज मैंने DGCA में इस मामले को दर्ज कर दिया है।”
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि DFI की संयुक्त कंपनियाँ देश की सुरक्षा के लिए खतरा हो सकती हैं। “DFI की कंपनियाँ भारतीय सेना के साथ काम करती हैं, और पाकिस्तान में इनके ड्रोन पकड़े गए हैं। मैं उम्मीद करता हूँ कि अब एजेंसियाँ इस मामले की जाँच शुरू करेंगी,” तेज प्रताप ने आगे कहा।
इसके अलावा, DFI पर पिछले साल आईपीएल दुबई 2021 सीजन के दौरान फर्जी पायलट लाइसेंस जारी करने का आरोप भी है। यह लाइसेंस क्विडिच इनोवेशन नामक एक कंपनी को दिया गया था, जिसने आईपीएल में ड्रोन उड़ाने का काम किया था।
DFI और इससे जुड़ी सदस्य कंपनियों पर यह भी आरोप है कि उन्होंने सरकारी निविदाओं में हेराफेरी कर रक्षा, कृषि, मानचित्रण, और खनन जैसे क्षेत्रों में अपनी भागीदारी सुनिश्चित की और प्रतिस्पर्धा को कम करके कीमतें बढ़ाई।
इन सभी आरोपों के बावजूद, DGCA और नागरिक उड्डयन मंत्रालय की ओर से अब तक DFI पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। भारत में तेजी से विकसित होते ड्रोन उद्योग को देखते हुए यह मामला अहम हो गया है ताकि कोई बड़ा घोटाला न हो, जैसा कि 2009 में टेलीकॉम सेक्टर में हुआ था।