प्रेमियो ! निर्माणाधीन मंदिर के लिए अभी आपके पास में तीनों तरह की सेवा का है मौका
रेवाड़ी (हरियाणा)निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, जीवात्मा को निज घर सतलोक जयगुरुदेव धाम पहुंचाने के लिए नाना प्रकार के उपाय निकालने वाले, हल्की-फुल्की सेवा से ही बड़े भारी पाप कर्मों को कटवा देने वाले, इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि जो जीने का समय मिला है, इसमें ये अपना (असला) काम कर लो। ये जो दुनिया का काम कर रहे हो, ये दूसरों के काम आएगा। और अगर भजन, ध्यान, सुमिरन में मन न लगे तो समझ लो कोई गलती बनी है। मन से, शरीर से, धन से गलती बनी है। जो कर्म आड़े आ रहे हैं तो सेवा करो। जो इधर-उधर (गलत तरीके) से धन आ गया है, उसको अच्छे काम में लगा दो। जो तन से गलती बन गई, उसी तन से सेवा कर लो। जिस तरह का सन्तों ने आदेश दिया है, उसी तरह का काम कर लो।
जब तक सतयुग न आ जाएगा तब तक यह सेवा खत्म होने वाली नहीं
जैसे पहले किसी से कोई गलती हो गई हो तो महात्मा लोग पाठ करवाते थे, उसी को रोज पढ़ो। उसको पढ़ने से क्या मिलेगा? पोथी पढ़-पढ़ जग मुवा, पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम के, पढ़े सो पंडित होय।। तो क्या बताया जाए कि इसको आप पढ़ो। सन्तों की किताबों को पढ़ोगे भी तो समझ नहीं पाओगे। तो बता दिया गया कि प्रचार करो। लोगों को समझाओ, बताओ, उनका खान-पान, चाल-चलन सुधारो, विचार भावनाएं सही करो, शाकाहारी और नशा मुक्ति का प्रचार करो। हाथ जोड़कर विनय हमारी, तजो नशा बनो शाकाहारी। छोड़ो व्यभिचार बनो ब्रह्मचारी, सतयुग लाने की करो तैयारी।। जो ब्रह्म में विचरण करे सो ब्रह्मचारी। जब तक सतयुग न आ जाए तब तक यह सेवा खत्म होने वाली नहीं है क्योंकि गुरु महाराज ने एक लक्ष्य, एक उद्देश्य बनाया था- इस धरा पर ही सतयुग उतर आएगा। तो गुरु का ही काम हमको-आपको करना है तभी गुरु भक्ति जगेगी, गुरु खुश होंगे। उनको खुश करने के लिए सतयुग को लाना ही पड़ेगा। आप सभी अपने-अपने हिसाब से, औकात से, बराबर सेवा करो, सेवा में लगो।
मंदिर में तीनों तरह की सेवा लग सकती
सेवा का बहुत माध्यम होता है। मन की, तन की और धन की सेवा। जैसे अभी यह गुरु महाराज बाबा जयगुरुदेव जी का अद्भुत मंदिर बावल, रेवाड़ी, हरियाणा में बन रहा है। इस समय पर इसमें भी तीनों तरह की सेवा लग सकती है। लोग करते भी हैं। आप लोग करते न होते तो कैसे इतना ऊंचा (उठ गया) होता? आप देखो, अभी इसमें गुंबज लगेंगे, पत्थर लगाने की भी योजना है। नहीं पत्थर अगर लग पाया, रंग-पोताई ही होगी, कुछ न कुछ तो होगा। कलश वगैरह कुछ न कुछ तो रखना पड़ेगा, तभी तो मंदिर का पता चलेगा।
जीवात्मा किसी तरह से घर अपने पहुंच जाए
यह भी बांस है, चढ़ो और उतरो (इसकी एक रोचक कहानी गुरु महाराज ने पहले के सतसंग में सुनाई थी)। ये ख़त्म होने वाला है? जब शुरुआत हुआ तब आपने दिया। शुरुआत में आए, गड्ढा खोदा। अहोभाग्य उनके जो तन की सेवा किया। फिर जब जुड़ाई हुई इसकी, उसमें सेवा किए। उसका खर्चा आया, आपने दिया। जो भी है, वह तो आपको करना ही करना है। आओ, सेवा करो, घर चले जाओ, बच्चों की देखरेख करो। आपके पास जो मेहनती ईमानदारी की कमाई में से बचे, इसमें लगाओ। बांस है। यह सब सेवाएं समय-समय पर बताई जाती हैं। गुरु महाराज और अन्य जो महात्मा हुए, सब बताते रहे। सबका एक ही लक्ष्य रहा कि किसी तरह से जीवात्मा घर अपने घर अपने वतन पहुंच जाए।