लक्ष्मीबाई देश की वो नायिका हैं जो वीरता की श्रेणी में सबसे ऊपर हैं

कौशाम्बी।अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद जिले के सिराथू तहसील स्थित धनपति देवी श्याम नारायण इंटर कालेज द्वारा 19 नवंबर को महारानी लक्ष्मीबाई की जयंती को स्त्री सशक्तिकरण दिवस के रूप में मनाया गया। जिसके पूर्व संध्या पर छात्राओं को शिक्षा,स्वास्थ्य,सुरक्षा,सम्मान एवं स्वावलंबन हेतु संकल्पित करने एवं समाज में व्याप्त विकृतियों के समूल समाधान हेतु संगोष्ठी का आयोजन कर नगर में शोभा यात्रा निकाली गई। मुख्य अतिथि शिक्षक एमएलसी प्रतिनिधि संतोष शुक्ला ने छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि 19 नवंबर का दिन भारतीयों के लिए बहुत खास दिवस है। उस दिन देश की पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी जिसका नाम लेकर आज भी महिलाओं और बच्चियों में जोश भरा जाता है, उनका जन्म हुआ था। वह वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई थी रानी लक्ष्मीबाई देश की वो नायिका हैं जो वीरता की श्रेणी में सबसे ऊपर हैं और जब भी वीरता की बात चलती है सबसे पहले उनका जिक्र आता है।

स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाली लक्ष्मीबाई बचपन से ही त्याग करती रहीं जिसके बाद वह फौलाद बन गई थीं। जिसकी वजह से बड़े से बड़ा निर्णय वह झट से ले लेती थीं। बनारस के करीब एक छोटे से गांव में पैदा हुई मणिकर्णिका मनु बचपन से ही तेज तर्रार थीं। मां को चार साल की उम्र में ही खो चुकी मनु का लालन-पालन देश के योद्धा की तरह किया गया था। 18 साल की आयु में उनकी शादी कर दी गई। वह जल्द ही झांसी के शासक के रूप में उभरीं। उनके तेजतर्रार,हार न मानने वाली छवि के कारण उन्हें लक्ष्मीबाई कहा जाने लगा।

जिला संयोजक शिवबाबू चौधरी ने कहा की ब्रिटिश आर्मी के सीनियर अधिकारी कैप्टन ह्यूरोज ने रानी लक्ष्मी के साहस को देखकर उन्हें सुंदर और चतुर महिला कहा था। अंग्रेजों से युद्ध के दौरान रानी ने भी अपने घोड़े सहित किले से छलांग लगाई थी। जब वह मैदान में लड़ाई लड़ रहीं थी तब वह देश में एक ऐसा इतिहास रच रही थीं जिसे आज भी गाते हुए रोंगटे खड़े हो जाते हैं। खून खौल उठता है और सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। जिस दौड़ में महिलाएं पारंगत तो युद्ध की हर कला के लिए की जाती थीं लेकिन उन्हें सिर्फ महल की शोभा बना कर रखा जाता था इस दौड़ में रानी लक्ष्मी बाई ने महिला सशक्तिकरण की इबारत लिख दी थी। पूर्व प्रांत सहमंत्री रिचा पांडेय ने कहा की महारानी लक्ष्मीबाई न केवल कुशल नेतृत्व करता थीं वहीं वह कूटनीति में भी माहिर थीं। उनके निर्णय को पूरा झांसी मानने लगा था यही वजह थी कमजोर पड़ते झांसी के नेतृत्व के बीच उन्हें अपना सेनापति घोषित किया। इतिहासकार बताते हैं कि सैनिक झांसी के किले पर लक्ष्मीबाई के जयकारे लगाने लगे तो रानी ने उनका नेतृत्व करना स्वीकार किया और उसके बाद वह तब तक शांत नहीं बैठीं जब तक वह खुद शांत नहीं हो गईं। इतिहासकार बताते हैं कि रानी चाहती थीं कि अंग्रेजों से युद्ध न करना पड़े, ताकि झांसी की बेगुनाह जनता को इस लड़ाई की कीमत न चुकानी पड़े। रानी आखिरी दम तक राज्य को किसी भी तरह की त्रासदी से बचाना चाहती थीं।

लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों से लोहा लेते हुए उनसे किसी भी तरह के समझौते से इनकार किया और झांसी को वापस लेने की कसम खा ली। उन्हें कई बार देशद्रोहियों का सामना करना पड़ा, लेकिन वे डिगी नहीं और उन्हें टक्कर दी और हराया भी।
इस अवसर पर विशिष्ठ अतिथि अतिथि विजेंद्र सिंह और कॉलेज के प्रधानाचार्य और अन्य कार्यकर्ता उपस्थित रहे।

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