कृपा सिन्धु नर रूप हरि, नर तन में ही हरि आते हैं लेकिन वक़्त के महापुरुष को लोग पहचान नहीं पाते

कबीर, पलटू, मीरा, तबरेज, ईसामसीह, गोस्वामीजी, गुरु महाराज जैसे महापुरुषों के साथ लोगों ने किया अत्याचार

रेवाड़ी (हरियाणा)इतिहास गवाह है, जैसे पहले के महात्माओं को उनके समकालीन लोग पहचान नहीं पाए, उनसे लाभ नहीं ले पाए और मौक़ा चूक गए ऐसे ही इस समय के जिस महापुरुष को, जिन वक़्त गुरु को लोग पहचान नहीं पा रहे हैं, और पुराने महात्माओं की जड़ फोटो, विडियो, किताबों, प्रवचनों को ही सब कुछ मान कर अपनी भौतिक और आध्यात्मिक तरक्की पर खुद ही ब्रेक लगाए हुए हैं, और बाद में पक्का पछतायेंगे, ऐसे नर रूप में आये हुए कुल मालिक, हर तरह से समरथ, परम सन्त, वक़्त गुरु दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि देखो महात्माओं को कहां लोग समझ पाते हैं। प्रभु मनुष्य शरीर में ही इस धरती पर आते हैं और अपना काम करके चले जाते हैं। इसी भारत भूमि पर कितने महापुरुष आए और चले गए लेकिन उनको उस समय पर क्या लोगों ने पहचाना? नहीं पहचाना। न कबीर साहब को, न पलटू, न मीरा को, तबरेज की खाल खींच लिया, ईसा मसीह को लटका दिया, गोस्वामी जी को जेल में बंद कर दिया, और भी बहुत कुछ। सदा संसार में सतपुरुष नर तन धरके आए हैं। मगर दुनिया वाले क्या उन्हें कभी पहचान पाए हैं।।

मनुष्य शरीर में पहचान नहीं होती, पहचान तो अंदर में होती है

अपने गुरु महाराज को भी कहां पहचान पाए। पहचान बाहर से नहीं, अंदर से होती है, अब भी होती है। रानी इंदुमती जब साधना करके ऊपर सचखंड में गई तो देखा उस वक्त के गुरु कबीर साहब ही पूरी सृष्टि को चला रहे थे। तब बोली कि मुझे अगर मृत्यु लोक में यह मालूम होता कि आप ही सब कुछ करने वाले हो तो मुझको इतनी मेहनत क्यों करनी पड़ती, मैं तो आपकी पूजा करके, आपका चरण कमल पकड़ करके ही पार हो जाती। तब कबीर साहब ने कहा तुझको विश्वास न होता कि मनुष्य शरीर में भी इतनी शक्ति हो सकती है। इसलिए तुझको रास्ता बताया, रास्ते पर चलाया और फिर यहां लाकर के यह जलवा दिखाया। बोल मदद किया या नहीं किया? चरणों पर गिर पड़ी, बोली आपकी मदद के बिना तो मैं कचरे गन्दगी में फंसी हुई थी, वहां से निकल ही नहीं सकती थी, मैं तो साधारण घर में नहीं, राजमहल में रहती थी, राज सुख को तो मैं छोड़ ही नहीं सकती थी, और कदम-कदम पर आपने मदद किया। जहां-जहां वज्र किवाड़ दरवाजे लगे थे, मुझमें उन्हें तोड़कर खोलकर आने की क्षमता नहीं थी, याद करने ही आप वहां खड़े मिले, और मुझे यहां लाकर अपने चरणों में शरण दिया, तो आपकी महिमा का तो वर्णन ही नहीं किया जा सकता है। सन्तों की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार। लोचन अनंत उघाड़िया अनंत दिखावन हार।। रानी ने कहा कि आपकी एक बात को मैंने पकड़ लिया- गुरु माथे पर रखिए, चलिए आज्ञा माहि। कह कबीर ता दास का तीन लोक भह नाहि।। कहीं भी कोई भी भय नहीं। इन्हीं तीन लोकों में ज्यादा भय रहता है- मृत्युलोक, अंडलोक और ब्रह्मांड लोक। बाकी उधर कोई भय नहीं है। गुरु को मस्तक पर सवार रख कर चलो, गुरु की बातों को याद रख करके चलो, मंत्र मूलम गुरु वाक्यम, गुरु की बात को याद रखो तो कहीं कोई भय नहीं। गुरु की पूजा में सबकी पूजा। गुरु समान कोई देव न दूजा।।

सतसंग, सेवा, भजन मुख्य हैं, इनको छोड़ दोगे तो गुरु की अंदर में पहचान कैसे होगी

प्रेमियो! हम और आप क्या करते हैं? गुरु को भूल जाते हैं, उनकी बातों को भूल जाते हैं तो गुरु की पहचान अंदर में नहीं हो पाती है। गुरु महाराज बराबर कहते रहते थे कि सतसंग, सेवा और भजन, यही मुख्य है। सतसंग छोड़ देते हो, सतसंग में आना-जाना बंद कर देते हो, जीवों की, संगत की शारीरिक, आर्थिक, मानसिक सेवा नहीं हो पाती है और भजन नहीं हो पाता है तो गुरु की पहचान कहां से होगी? फिर तो फँसते चले जाओगे। इसलिए ध्यान रखो।

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