दशहरा के दिन मन की गति और चाल को रोक ले गए, बुराइयों को छोड़ दिया तो आपका ये मन का रावण मर जाएगा
जालौर,राजस्थान पर्व और त्योंहार मनाने के पीछे छिपे असली उद्देश्य और संदेश को सरल शब्दों में बताने-समझाने वाले ताकि सभी इनसे मिलने वाले भौतिक और आध्यात्मिक लाभ को प्राप्त कर सके, इस समय के युगपुरुष पूरे समरथ सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि रावण के अहंकार ने उसकी विद्वता, शक्ति, तपस्या का नाश कर विनाश करवा दिया। रावण कौन था? बड़ा विद्वान, बलवान, बड़ी शक्ति ताकत वाला था। बहुत तपस्या, मेहनत किया था। ज्ञानी था, बहुत सक्षम था, धन इतना था कि सोने की लंका थी, ताकत इतनी थी कि उसके सामने लड़ाई में आने में बड़े-बड़े देवता घबराते थे। लेकिन उसको राक्षस क्यों कहा गया? उसका सर्वनाश क्यों हुआ? रावण के घर में एक लाख पूत सवा लाख नाती, एक भी नहीं बचे क्यों? क्योंकि उसके अंदर प्रमुख रूप से तीन बुराइयां आ गई थी- मांस खाता था, शराब पीता था अब दूसरे की मां-बहन को गलत नजर देखता था। जब मांस खाया और उसी का खून बना, शराब पिया वैसे ही बुद्धि हो गई। बुद्धि भ्रष्ट जब हुई, तब दूसरे की मां-बहन को अपनी ही पत्नी समझने लगता था तो मन उससे पाप करा देता था और उसके अंहकार में आ जाता था कि हमारे पर रोक-टोक नहीं है, कोई एक्शन-रिएक्शन नहीं है, हम तो आजाद हैं, पावरफुल हैं तो वह अहंकार उसको खत्म सर्वनाश करा दिया।
यदि आप भी वैसा ही बुरा कर्म करोगे तो
अब आपका मन अगर उसी तरह से कामी, क्रोधी हो गया तो रावण वाले कर्म अगर आप करोगे तो शरीर से पाप बन जाएगा। दूसरे की औरत को, बच्चियों दूसरे के पुरुष को गलत नजर देखने लग जाओगी तो शरीर पापी हो जाएगा। पाप की सजा तो मिलती है, पाप का अंत तो होता है। पाप जब बहुत बढ़ जाता है तब धर्म की स्थापना होती है। मन को आज मारने की जरूरत है। आज दशहरा के दिन मन की गति-चाल को रोक ले गए, बुराइयों को छोड़ दिया तो आपका ये मन का रावण मर जाएग और यही मन फिर उधर ऊपर प्रभु की तरफ लग जाएगा।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मची खलबली पर इशारा
नाम, मान-सम्मान उसी का होता है जो सबका ध्यान रखता है, मुखिया वोही कहलाता है। विदेशों में विनाश लीला चल रही, बेमौत लोग मर रहे, कहने को शक्तिशाली देश का सपोर्ट है लेकिन जब उस पर ही हमला हो जायेगा तब वो अपने घर की आग बुझाएगा या दुसरे के घर की? कहावत है की जब सबकी दाढ़ी में आग लगती है तब सब अपनी-अपनी बुझाते हैं। जान-अनजान में बने कर्मों (जैसे लकड़ी के साथ उसके अंदर के जले कीड़े, दूसरों की निंदा-बुराई आदि) की सफाई आपको बताई गयी साधना ध्यान भजन सुमिरन से होगी तब गुरु का स्वरुप अंतर में दिखेगा। नवरात्रा आई, बरसात ख़त्म, अब ठंडी शुरू होगी। इसमें तत्वों में तबदीली होती है, खाली पेट में भगवान् की याद आती है, तीनों गुण (तमो, रजो, सतो) ख़त्म होते हैं। तमो गुणी प्रवृत्ति सबमें होती है, जानवरों में, आदमियों में भी, गुस्सा बहुत आता है, विनाश नुक्सान वाली बात सोचता रहता है। रजो गुणी प्रवृत्ति में आलसी स्वभाव। कौन जाए प्रचार में, कल चलेंगे सतसंग में, ध्यान भजन सुबह कर लेंगे आदि। सतो गुण में आदमी दान पुण्य करता, तीर्थों में जाता, लोगों की मदद कर देता है लेकिन तीनों गुणों से आत्मा को कोई फायदा नहीं होता है। सब यहीं (दुनिया) की चीजें हैं। महात्मा दोनों तरह से लोगों को लाभ दिलाते हैं, लोक-परलोक के। कई तरह के उपवास का नियम बनाया ताकि सबके पेट की मशीन को आराम मिल जाए।