हम-आप लोग यही परोपकार का काम करने के लिए बनाए गए, यह समझ लो भेजे गए हैं
उज्जैन (म.प्र.) अपने प्रेमियों का अच्छा संकल्प पूरा करवाने वाले, चौरासी का ताला खोलने वाले, बाहरी व्यवहार की बजाय अंतर की भावना को महत्त्व देने वाले, पूरे समर्थ सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने दीपवाली पर्व पर अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि अगर आप अपने बच्चे को, किसी को समझाओगे तो मान जायेगा, क्योंकि उसको बुद्धि, विवेक है। अगर आप चाहो तो इनको समझा कर हैवानियत से बचा सकते हो। परिवार वालों, रिश्तेदारों, पड़ोसियों, मिलने-जुलने वाले दोस्तों को, जिनसे आपका संबंध है, सौदा-सामान जिसके यहां से करते, खरीदते-बेचते हो या दफ्तर में सहकर्मीयों को समझा ले जाओ। किसान किसान को, बच्चियां बच्चियों को आदि समझा ले जाओ तो अभी देखो बहुत से जीवों की रक्षा हो जाए और बहुत से लोग पाप से बच जाएँ। रावण जैसा कर्म करने वाले बहुत से लोग, उससे बच जाए और उनका विनाश न हो। नहीं तो विनाश अवश्यांभावी। देखो! जब आदमी की बुद्धि खराब हो जाती है, दिल-दिमाग काम नही करता है तब प्रकृति विनाश करती है। विनाश करने वाले अलग होते हैं। जब आदमी की बुद्धि काम नहीं करती है और आर्त भाव से उस प्रभु को पुकारते हैं तो मदद करने वाले भी रहते हैं, महात्मा, समर्थ गुरु मदद करते हैं। प्रभु किसी न किसी को बहाना बना करके मदद करा दिया करता है। तो यह है धरती। इस धरती पर हर तरह की व्यवस्था है। ऐसी व्यवस्था उसने कर रखी है। लेकिन यही काम जब दूसरे लोग कर ले जाएंगे तो आप क्या करोगे? तो हम-आप लोग यही काम करने के लिए बनाए गए, यह समझ लो भेजे गए हैं। और लोग तो वहां पटाके छोड़ रहे हैं, बढ़िया मोमबत्ती लाइटें जला रहे ताकि लोग कहें कि ये बड़े शौकीन हैं, बड़े आदमी है। जुएँ में दिवाली का दिवाला निकाला जा रहा है और आप यहां घर छोड़ कर के आए हो और यहां इस मिट्टी में, जमीन में बैठे हो, (भंडारे में) जो भी रूखी, सूखी, जली भुनी रोटी मिले उसे खा रहे हो और वो वहां माल काट रहे हैं। आप में और उनमें अंतर है। वृक्ष कबहुँ न फल भखै, नदी न संचय नीर, परमारथ के कारने, सन्तन धरा शरीर। सन्त दूसरों की मदद के लिए आते हैं। लेकिन ये इतिहास बता रहा है कि जितने भी महापुरुष आए, जितने भी सन्त आए, सब लोगों ने अपने-अपने प्रेमियों से सहयोग लिया, प्रेमियों के कर्मों को काटा, प्रेमियों का इतिहास बनाया है। इसलिए आपको और हमको भागीदार तो होना ही है। संकल्प किसका पूरा होता है? जो महापुरुष संकल्प करते है, उनका पूरा हो जाता है। आप देखो, चोर संकल्प बना कर के चोरी करने जाता है। अगर उसका दांव नहीं लगता है तो दरवाजे पर पड़ी फटी-पुरानी चप्पल को ही उठा कर ले जाता है। आज कुछ लोग ये कहते है कि आज अगर कमा लोगे, आज अगर दुकान खोलोगे तो आज लक्ष्मी कूद करके आती हैं, लक्ष्मी की बरसात होती है, छप्पर फाड़कर देती हैं। आज तो खूब कमाने में लोग लगे हुए हैं। आज लोग मंत्र जगाते हैं, कहते है कि अमावस्या के दिन इस मंत्र में ताकत आ जाएगी। इसमें देवी-देवता सब देखते हैं, नजर डालते हैं। जिनका आव्हान करेंगे, वही हमारी मदद साल भर करेंगे, तो वो करते हैं। और जो लोग चोरी करते हैं, अपनी चोरी जगाते हैं तो संकल्प बना करके जगाते हैं तो नहीं कुछ होता है तो चप्पल ही ले आते हैं, ऐसे अपनी दिवाली जगाते हैं। अब आप ये सोचो प्रेमियों! उनका बुरे लोगों का अगर संकल्प पूरा हो जाता है तो अच्छे लोगों का संकल्प क्या पूरा नहीं होगा? तो आप भी संकल्प बनाओ जैसे गुरु महाराज ने संकल्प किया था कि कलयुग में ही सतयुग इस धरती पर ला दिया जाएगा, आ जाएगा। तो ये संकल्प पूरा आप करो क्योंकि गुरु के आप ऋणी हो और गुरु से कोई उद्धार नहीं हो सकता है। गुरु का बहुत बड़ा कर्जा होता है। गुरु के कर्जे से कोई मुक्त नहीं हो सकता है। देखो “जस पूजा तस चाहिए देवता” जैसा देवता हो वैसी उसको पूजा दे दी जाती है, खुश कर दिया जाता है। लेकिन जिसके पास सब कुछ होता है, जो दाता होता है उसको आप क्या दे करके खुश कर सकते हो? वो चीज जो उन्होंने दे दी, ऐसी चीज दे दी कि बंधन से बिलकुल मुक्त हो जाने का रास्ता दे दिया तो उस कर्जे को आप कैसे दे चुका सकते हो? जेल में बंद कैदी की खाने, पीने, रहने, पहनने, ओढ़ने की तकलीफ दूर करने वालों का उपकार कैदी मानता है लेकिन जिसने जेल का ताला ही खुलवा दिया, कैद से जेलखाने से मुक्त स्वतंत्र करवा दिया, उसका सबसे बड़ा उपकार मानता है। सन्त क्या करते हैं? कैद से मुक्त कराते हैं। एक जगह से निकाले गए और दूसरी जगह कैद कर दिए गए। ये जीवात्मा कहां कैद है ? इसी शरीर के अंदर कैद है। “निकसन की कोई राह न पावे” जीवात्मा निकलने का रास्ता ही नहीं पा रही है। क्योंकि वज्र किवाड़ लगा हुआ है। वो कर्मों की मीलों लंबी मोटी दीवाल लगी हुई है। जब वो दरवाजे से हटेगी तभी तो ये निकलेगी। लेकिन समर्थ गुरु ऐसे होते हैं, गुरु महाराज ऐसा रास्ता आपको बताए कि एकदम से मुक्त हो जाओ, किसी भी जेलखाने (चौरासी लाख योनियों) में जाना न पड़े। चूहा बिल्ली कुतिया भैंस गाय घोड़ी गधी आदि किसी भी मां के पेट में जाना ही न पड़े। एकदम से निकल चलो, तो ऐसा मुक्ति का जिन्होंने रास्ता दे दिया कि उनके एहसान को आप कैसे चुका सकते हो। आपके पास तो कोई चीज है ही नहीं, जो देकर के उनको खुश कर सकते हो। एक चीज से खुश होते हैं वो, किससे? अंतर का भाव जग जाए उनके लिए कुछ करने का, उनके मिशन को पूरा करने का। वो जो चाहते हैं, उसको करने का भाव अगर जग जाए तो “सन्त न देखे चाल कुचाल, वो परखे अंतर का हाल” तो वो अंतर का हाल जब परख लेते हैं, देख लेते हैं कि ये आदमी देखो हमसे बड़ा प्रेम करता है, ये आदमी सच्चा है, अच्छा है। एक-दो बार जब देख लेते है की ये खरा उतर गया तब वो उससे प्रेम कर लेते हैं। तब तो बराबर आपका काम होता रहेगा। ये गृहस्थी की गाड़ी अपने आप चलती रहती है। कोई कहे मैं चला रहा हूं, मैं कर रहा हूं तो सबसे बड़ा यही भ्रम और भूल है।