सुखदेव और नारद के प्रसंग से समझाया कि कैसे आदमी अपने अच्छे कर्मों को ख़त्म कर देता है
उज्जैन (म.प्र.)इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि प्रेमियो! कदम-कदम पर गुरु की जरूरत पड़ती है। और जब गुरु की दया हो जाती है, यही धीरे-धीरे सीढ़ी-सीढ़ी अपने वतन अपने मालिक के पास जीवात्मा पहुंच जाती है। तो गुरु कहते हैं, पकड़ो बांह हमार। आप उंगली पकडते हो तो माया के बाजार में, धन में, प्रतिष्ठा में, दुनिया की चीजों में, पुत्र परिवार औरत पति के मोह में फंस कर उंगली छोड़ देते हो। यहां तो खूब (सतसंग) सुनते हो और समझते भी हो लेकिन जब यहां से जाओगे तो वही नमक तेल लकड़ी, वही हमारे भैया, बहिन, वही हमारी पत्नी, पति, वही हित मित्र रिश्तेदार दिखाई पड़ेंगे और आप गुरु को प्रभु को भूल जाओगे। लेकिन जब वह हाथ पकड़ते हैं तब नहीं छोड़ते हैं। पकड़ कर ले आए न गुरु महाराज आपको यहां। आप घर से निकलने वाले थे? बहुत से लोग घर में बैठकर यही सोचने लगे कि ठंडी हो रही है, ठंडी में कहां जाएंगे, कहां रहेंगे, कहां रुकेंगे। लेकिन आप लोगों के ऊपर दया हुई और आप खिंच करके यहां पर आ गए। ऐसे ही जो हाथ गुरु का पकड़ लेते हैं, उनको गुरु खींच लेते हैं, छोड़ते नहीं है। क्योंकि इसलिए भेजे जाते हैं कि- हम आये वही देश से, जहां तुम्हारा धाम, तुमको घर पहुंचावना, एक हमारो काम। उनका एक लक्ष्य, एक उद्देश्य रहता है कि हम तुमको अपने असला घर पहुंचा दें, इसीलिए आते हैं। गुरु महाराज बहुत लोगों को नामदान दिये और नामदान ही नहीं दिये, उनके कर्मों को कटवाए, सेवा करवा करके। आप क्या सेवा करोगे? सेवा तो अब रह ही नहीं गई क्योंकि बहुत संख्या हो गई आपकी। गुरु महाराज के समय में बहुत कम लोग थे। हम लोगों ने कम सेवा किया? यह जो गांठे अब भी (हाथों में) पड़ी हुई है, यह सब फावड़ा चलाने में, खेती का काम करने में, झाड़ू लगाने में, लैट्रिन पेशाब साफ करने में, गांठे बनी, यह सब शरीर के अंग लगे हैं तो बड़ी सेवा होती थी। सेवा करवा करके कर्मों को कटवाते थे। और सेवा करवा करके कर्मों को इकट्ठा करते थे कि वह दूसरों के काम आ जाए। पहले आदमी को मालूम हो जाता था कि हमारे पास पाप कर्म कितने हैं और पुण्य कितना है। तो पाप तो लोग करते ही नहीं थे, हो जाता था तो वह बात अलग थी। लेकिन पुण्य इतना इकट्ठा हो जाता था की उसी से वह (पाप) कट जाता था।
कर्मों को काटने के लिए बनाये गए नियम
देखो गृहस्थ का कैसा नियम बना दिया था। जैसे झाड़ू-पोंछा लगाते हैं, कीड़े-मकोड़े नहीं देख पता है आदमी तो उसमें मर जाते थे। चूल्हे में लकड़ी के अंदर के कीड़े जल कर मर जाते थे तो पाप तो लगता था लेकिन एक दिन-दो दिन इस तरह का होता था की चूल्हा जले ही नहीं। पूरे घर के लोग 15 दिन में एकादशी रहते थे। कोई भोजन बनता ही नहीं था। क्वार महीने में घर से बाहर जाकर आवंले के पेड़ के नीचे पका करके खाते, प्रायश्चित करते थे लोग। उससे क्षमा हो जाता था। माता जब भोजन बनाने लगती थी तो आटा-दाल आदि बनाते समय एक चुटकी आटा-दाल-चावल आदि रख देती थी। भंडारा में कोई रुखा दुखा आ गया, उसे खिला दिया, उससे ये सब छोटी-छोटी चीजों का क्षमा हो जाता, कर्म कट जाते थे। तो भारी कर्म बनते नहीं थे लेकिन पुण्य कर्म बनते थे। तो पुण्य कर्म की वजह से पहले लोग क्या करते थे? कहा गया है- काम न जीता, क्रोध न जीता, यह कोई जीत पाते हैं? कंचन तजना सहज है, सहज त्रिया का नेह, मान बढाई ईर्ष्या, दुर्लभ तजना देह। मान सम्मान प्रतिष्ठा को कोई तजना चाहता है? तब किसी ने कुछ बोल दिया, कुछ हरकत कर दिया तो लोग श्राप दे देते थे तो उसका नुकसान हो जाता था। जो अच्छे कर्म होते थे, उसमें चले जाते थे। और बोलने वाले, करने वाले को पता नहीं चलता था कि कितने हमारे (अच्छे) कर्म खत्म हो जाएंगे।
सुखदेव और नारद का प्रसंग
आपको सुखदेव के बारे में बताया गया की सुखदेव के अंदर 14 विद्या थी। लेकिन 12 बार राजा जनक, जो उस समय के त्रिकालदर्शी महात्मा थे, उनकी उसने निंदा किया और वे सब कर्म खत्म हो गए। तो नारद गरीब मजदूर का भेष बना करके और उसको बोध कराये। नारद मजदूर बन करके पानी में मिट्टी फेंक रहे थे और सुखदेव वहां से जा रहे थे। पूछा क्या कर रहे हो? बोले, पानी में पुल बना रहा हूं। सुखदेव ने कहा पुल ऐसे बन नहीं सकता है। मिट्टी तो सब बह जाएगी। तुम्हारी दिनभर की मेहनत बेकार चली जाएगी। नारद ने कहा हमारी तो दिन भर की मेहनत बेकार जाएगी और वेदव्यास का पुत्र, सुखदेव, उसकी तो पूरी जिंदगी की मेहनत बेकार जाने वाली है। अब सुखदेव चैतन्य हो गए क्योंकि सुखदेव वो स्वयं थे। पूछे सुखदेव की मेहनत कैसे बेकार जाएगी? नारद बोले, राजा जनक जो इस समय के वक्त गुरू त्रिकालदर्शी है, सुखदेव उनकी निंदा बारह बार तो कर चुका, दो बार और कर देगा तो (उसकी कमाई हुई) सब (विद्या) खत्म हो जाएगा। तो ऐसे पता नहीं चलता है। किसको क्या कह देने में कितने कर्म चले जाएंगे। पंजाब में 10 गुरु हुए। उसमें अर्जुन साहब ने उस पर रोक लगा दिया और अंतर में उस (अंतर साधना की कमाई) को जमा करने लग गए। तो (अब आदमी को) पता ही नहीं चलता कि कितना अच्छा (कमाया) है, कितना क्या है। तो उस पर लग गया ब्रेक। तो आपको मैं बता रहा था, जब यह कर्म कटते हैं तब आदमी आगे बढ़ता है, लेकिन कर्म काटना जो जानता है वही कर्म काट सकता है। (इसलिए ऐसे जानकार भेदी गुरु को खोजना चाहिए)