जयगुरुदेव सन्त बाबा उमाकान्त जी ने किया उपरी लोकों का, उपरी रचना का इशारा
गोंडा (उ.प्र.)तीसरी आँख, दिव्य द्रष्टि, थर्ड आई खोलने वाले, साधना बनाने वाले, गलतियों से बचाने वाले, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि जब आप बताये गए तरीके से ध्यान लगाओगे, ऊपरी लोकों का नजारा देखोगे, ऊपरी लोकों में इतनी सुंदरता, इतनी मोहकता, यहाँ देखो रासलीला रामलीला हो रही है, यह देखो यहां पर सुगंधी ही सुगंधी है, यह देखो बढिया अमृत के तालाब, कुंड भरे हुए दिखाई पड़ रहे हैं। जब देखोगे बिना भूमि एक महल बना है। चारों तरफ रोशनी है, यह जो पेड़-पौधों के ऊपर रुहों के फल लगे हैं, यह चहचहाती चिड़िया जो दिखाई पड़ रही है, इनमें कितनी सुंदरता है। नजदीक में जाओगे तो देखोगे जैसे कोई कपड़ों के ऊपर कसीदा काट देता है, उस तरह की धरती दिखाई पड़ेगी, सूरज जमीन में बिछे हुए दिखेंगे। तो जब ऐसा देखोगे तो खुश हो जाओगे। और खुश होकर के दूसरों को बताने लगोगे। जैसे ही बताओगे तैसे ही वह बंद कर देगा। फिर देख नहीं पाओगे, तरसते रह जाओगे। जब एक बार दया के घाट को छोड़ देता है, दया के घाट से अलग हो जाता है तब आदमी जीवन भर तरसता रह जाता है। इसीलिए दया को ठुकराना मत। और याद करोगे तो समझो दया मिलेगी। द-या हिंदी में लिखो और पलट के पढ़ो तो या-द तो जब इस दुनिया की तरफ से ध्यान को हटाओगे और उधर उसकी तरफ लगाओगे और तब याद करोगे क्योंकि एक साथ दो चीज याद नहीं कर सकते हो। जिसका नाम पुकारोगे, उसका चेहरा सामने आएगा, तो जब इधर को छोड़ोगे, इधर की याद भुलाओगे, उधर याद करोगे तब दया होगी।
ध्यान, भजन साधना क्यों नहीं बनता है
परमार्थियों को, साधकों को थोड़े समय के लिए दुनिया को देखना ही नहीं चाहिए, दुनिया की चीजों को, अपने शरीर को भी भूल जाना चाहिए। सब कुछ भूल करके केवल एक प्रभु के याद में लीन होना चाहिए। जो आप से, हमसे नहीं हो पाता, इसी को करने की जरूरत है। भजन करते, ध्यान लगाते समय बिलकुल भूल जाओ। ध्यान लगाने में ध्यान नही बनता, भजन करने में भजन नही बनता है- उसका कारण क्या है? कारण यही है की बराबर दुनिया की चीजें याद आती रहती हैं। खाने की, घूमने की, पोते, परिवार, पत्नी, धन-दौलत, दुकान, दफ्तर, खेती, गृहस्थी, मान-सम्मान, कुर्सी आदि यही सब बराबर याद आता रहता है। तो भाई “उधो मन नाही दस बीस” मन तो एक ही है। जहां मन को लगाओगे, वही तो चीज सामने आएगी। और मन अगर उधर लगा दो, जिनका नाम लो, उनके रूप को याद करो, सुमिरन करो, मन उधर लगा दो तो वो भी देखेगा की देखो हम को याद कर रहा है। और नहीं तो आप सुमिरन करते हो, पहले नाम का करते हो और ध्यान कहां है आपका, ध्यान उधर चला गया, बाजार में सामान खरीद ने के लिए कि जैसे ही सुमिरन पूरा होगा, बजार जाकर दूध, सब्जी, पनीर, लाएंगे, पकौड़ा बनायेंगे, आज तो ये खाएंगे। तो किसकी याद आई? पकौड़े की। अरे सुमिरन किसका कर रहे हो ? जिसका नाम ले रहे हो उसका या पकौड़े का सुमिरन कर रहे हो? तो यही सबसे बड़ी भूल और गलती हो जाती है।
ध्यान भजन का अभ्यास करने से ऊपरी लोकों में भगवान दिखेंगे
आपको बुलाने के लिए आवाज ऊपर से आ रही है। हमेशा वह आवाज आ ही रही है। लेकिन अंदर का जो कान है, वह बंद है, कर्मों की वजह से मैल जमा है, वह इससे हटेगी। जब ध्यान लगाने लगोगे, कान में उंगली लगाकर आवाज को पकड़ने का अभ्यास करोगे, जब आप करोगे, आवाज मिलेगी, वह आवाज खींचकर ऊपरी लोकों में ले जाएगी तो वहां का नजारा दृश्य देखोगे जो यहां से बहुत सुंदर, बहुत अच्छा होगा। वह देवी-देवता भगवान जिनको आप कहते हो, वह जब साक्षात दिखाई पड़ेंगे, जब शंख चक्र गदा पदम् लिए हुए विष्णु भगवान दिखेंगे, जब कैलाश पर्वत पर शिवजी दिखेंगे तो उनको देखकर खुश हो जाओगे। और खुश होकर के दूसरों को बताने लगोगे। और जैसे ही बताओगे तैसे बंद कर देगा। तो कोई अच्छी चीज मिल जाए और वह चली जाए तो बहुत तकलीफ होती है। न मिले तो इतनी तकलीफ नहीं होगी और मिलने के बाद अगर चली जाए तो बहुत तकलीफ होती है। इसलिए किसी को भी बताना नहीं है।