प्रकाशनार्थ आलेख
अन्याय का संहार कर न्याय का राज सृजन करने वाले हैं ‘भगवान परशुराम’
मोहित त्यागी
अभिनेता, लेखक व समाजसेवी
शस्त्र और शास्त्र दोनों में पारंगत भगवान विष्णु के छठवें अवतार महर्षि भगवान परशुराम का जन्म
हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख मास की तृतीया तिथि यानी कि अक्षय तृतीया के दिन हुआ था। देश-दुनिया में सनातन धर्म के अनुयायियों के द्वारा इस पावन दिन को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। भगवान परशुराम का जन्म प्रसिद्ध महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका के यहां हुआ था। सनातन धर्म के विभिन्न धर्म ग्रंथों के आधार पर व हिंदू मान्यताओं के अनुसार भगवान परशुराम को दुनिया के सात चिरंजीवी पुरुषों में से एक माना जाता है, उनके बारे में कहा जाता है कि कलयुग में आज के समय में भी भगवान परशुराम पृथ्वी पर मौजूद हैं, वह चिरंजीवी है। भगवान परशुराम को अन्याय का संहार करके पृथ्वी पर न्याय का सृजन करने वाले न्याय के देवता के रूप में सनातन धर्म के अनुयायियों के द्वारा पूजा जाता है। विभिन्न हिंदू धर्म ग्रंथों में मिलने वाली कथाओं के अनुसार, धरती पर जब अन्याय, अधर्म और पापकर्म अपने चरम पर पहुंचा तो उस समय दुष्टों का विनाश करने के लिए ईश्वर ने स्वयं बारंबार अवतार लिया है, भगवान विष्णु ने भी स्वयं भगवान परशुराम के रूप में पृथ्वी पर अवतार लेकर दुष्टों का संहार किया था।
भगवान परशुराम को रामभद्र, भार्गव, भृगुपति, जमदग्न्य, भृगुवंशी आदि नामों से भी जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम ने गुजरात से लेकर केरल तक बाण चलाकर विशाल समुद्र को पीछे हटाकर पृथ्वी पर एक बहुत बड़ी नव भूमि निर्माण करने का कार्य किया था। मान्यताओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि भारत के अधिकांश ग्रामों को भगवान परशुराम ने ही बसाया था, इस वजह से वह भार्गव कहलाए।
हैहयवंशी राजा सहस्रबाहु अर्जुन का भगवान परशुराम के समय जनता के बीच भय और आतंक था, जनता उसके अत्याचारों से बेहद त्रस्त थी, अहंकार के मद में चूर यह राजा भार्गव आश्रमों के ऋषियों तक को आयेदिन सताया करता था, भगवान परशुराम ने उसके समूल वंश को समाप्त करने का कार्य किया था। इसके पश्चात उन्होंने अश्वमेघ महायज्ञ किया और संपूर्ण पृथ्वी को महर्षि कश्यप को दान कर दिया था। भगवान परशुराम ने सनातन संस्कृति की रक्षा के लिए हर युग में अपनी सार्थकता सिद्ध की है। उन्होंने त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम को मिथिलापुरी पहुंच कर अपने संशय के निवारण उपरांत उन्हें वैष्णव धनुष प्रदान किया था। उन्होंने उज्जैन में सांदीपनी ऋषि के आश्रम पधार कर वहां शिक्षा ग्रहण कर रहे साक्षात भगवान श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र प्रदान किया था।
सनातन धर्म के प्रकांड विद्वानों के अनुसार कलियुग में होने वाले भगवान विष्णु के दसवें कल्कि अवतार में भी भगवान कल्कि को भी भगवान परशुराम के द्वारा ही शिक्षा प्रदान की जाएगी। ऐसी मान्यता है कि भगवान परशुराम के निर्देशानुसार भगवान कल्कि भगवान शिव की तपस्या करके उनसे दिव्य अस्त्रों को प्राप्त करेंगे और पृथ्वी पर उत्पन्न सभी दुष्टों का संहार करेंगे। भगवान परशुराम इतने न्यायप्रिय थे कि उनके आगमन मात्र से ही समस्त प्रजा निर्भय हो जाती थी। भगवान परशुराम को पृथ्वी पर सामाजिक समानता, मानव कल्याण का प्रबल पक्षधर माना जाता है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार जब-जब पृथ्वी पर दुष्टों ने अपनी ताकतों का ग़लत इस्तेमाल किया, तब-तब भगवान ने स्वयं अवतार लेकर धर्मपूर्वक उन अधर्मियों का विनाश करके मानवता की रक्षा करने का कार्य किय था। भगवान परशुराम इसके सबसे बड़े प्रतीक हैं, उन्होंने सदैव यह प्रयास किया कि शस्त्र एवं शास्त्र के ज्ञान को सुपात्र व्यक्ति को प्रदान करके मानवता की रक्षा की जाये। भगवान परशुराम ने शस्त्र एवं शास्त्र ज्ञान प्रदान करने के जो उच्च मापदंड स्थापित किए, वह बेहद अनुकरणीय हैं और मानव के कल्याण, मानवता की रक्षा के लिए, धर्म की रक्षा के लिए व न्याय के लिए प्राचीन काल में व आज के आधुनिक काल में भी बेहद प्रमाणिक हैं। मैं सर्वशक्तिमान भगवान परशुराम को कोटि कोटि नमन वंदन करता हूं।