आत्महत्या कभी मत करना, नहीं तो प्रेत योनी में जाकर बहुत तकलीफ भोगनी पड़ेगी
गोंडा (उ.प्र.)इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि जो भी मनुष्य शरीर में है, स्त्री-पुरुष-बच्चे सबके अंदर में शिव नेत्र हैं। जब शिव नेत्र खुल जाता है तब यह भेदभाव, बहुत सारी चीजें खत्म हो जाती है, बहुत सारी चीजों की जानकारी हो जाती है। एक शिव नेत्र अंदर में है और यह दो आंख बाहर। उस शिव नेत्र से ऊपरी लोकों की चीज दिखाई पड़ती है। अंधेरे से जीव जब रोशनी में चला जाता है, आगे बढ़ता चला जाता है। और जब अंधेरा रहता है तब उसी में घूम-घूम के रह जाता है। तो एक आंख अंदर, दो आंखें बाहर।
आत्महत्या कभी मत करना
आत्महत्या कभी भी मत करना और नहीं करने के लिए बराबर सिखाते रहना। आत्महत्या से प्रेत योनि में जाना पड़ेगा। प्रेतों का जीवन बहुत ही खराब होता है। जल्दी से छुटकारा नहीं मिलता है, जबरदस्त प्रेतों की मार पड़ती रहती है। जिस पर लग जाते हैं, उससे जल्दी निकलते नहीं है। उसको समझाओ, पूछो, क्यों परेशान करते हो? छोड़ दो इसको तो कहते हैं कहां जाएं। अरे! कहीं भी जाओ। अरे जाएंगे तो मारे जाएंगे। जबरदस्त प्रेत होते हैं, वो कमजोर प्रेतों को बहुत मारते हैं। सौ-सौ कोस तक चिल्लाने की आवाज जाती है जब प्रेत, प्रेत को मारने लगते हैं। तो प्रेत योनि में मत जाना। और लोगों को भी बताते रहना। आत्महत्या करना, मानव हत्या करना, जीव हत्या करना बहुत बड़ा पाप कहलाता है। प्रेमियो! इससे दूर रहना। बहुत बुरे कर्मों की सजा इससे भोगनी पड़ती है, तो इससे दूर रहना।
सन्यासी साधू गृहस्थ धर्म का पालन नहीं कर सकते हैं
महाराज जी ने बताया कि जो सन्यासी साधू हो गए, वह गृहस्थ धर्म का पालन नहीं कर सकते हैं। अब यह है कि कोई महात्मा हो गया, यहां की पहुंच से बाहर हो गया, इससे ऊपर चला गया और जीवात्माओं को देखने लगा तो वह तो सबको अपना बच्चा समझेगा। सिय राम मय सब जग जानी; करहु प्रणाम जोरी जुग पानी। तो वो जो करेगा, सबके लिए करेगा, सबको अपना बच्चा मानेगा। जैसे गुरु महाराज कहा करते थे, मेरे अपने बच्चा तो कोई है नहीं लेकिन आध्यात्मिक दृष्टिकोण से मैं तुम्हारे बच्चों को और तुम लोगों को, अपना बच्चा मानता हूं और तुम्हारे लिए काम करता हूं। तो गुरु महाराज ने जो काम किया वह सबके लिए काम किया। देखो! अपने माता-पिता के हम भी बच्चे थे और गुरु महाराज के सन्तान तो थे। लेकिन उन्होंने अपना बच्चा मान करके, इस तरह से बनाया कि मैं आपको समझा रहा हूं, आपके अंदर संस्कार डाला, आप कुछ बच्चे ऐसे बैठे हो, जो उस समय बहुत छोटे थे, जब आपके माता-पिता गुरु महाराज के पास लेकर के गए थे। और उन्होंने एक तरह से संस्कार डाला और आप आए। आप नौकरी-काम में लगे, विद्या पढ़े, सब कुछ किया, गुरु की दया के द्वारा किया, उन्होंने ही दया किया। अगर आपसे पूछा जाए भाई आपका बिजनेस कैसे चल रहा है? कैसे चला? कैसे सीखे? कैसे पढ़े? तो आपका कहोगे गुरु महाराज की दया से ऐसा हुआ है। तो कोई सन्त बन जाए तो वह बात अलग है, बाकी लोग अपना बच्चा ही समझ के गृहस्थ आश्रम का पालन करते हैं। तो आप सब लोग भाग्यशाली हो।