तकलीफों को दूर होने में देर नहीं लगती सुनते-सुनते लोग शाकाहारी हो जाते हैं
उज्जैन दुःख के इस संसार में सुखी रहने का स्थाई तरीका बताने वाले, बच्चों में सही संस्कार डालने का उपाय बताने वाले, तकलीफें जल्दी और स्थाई रूप से दूर करने का प्रभावकारी और असरदार तरीका बताने वाले, शारीरिक लाभ और भौतिक लाभ दोनों दिलाने वाले, इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त महाराज जी ने 17 जून 2023 दोपहर करनाल (हरियाणा) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि जयगुरुदेव नाम की ध्वनि सब लोग बोलना बुलवाना शुरू कर दो, जिनके घरों में तकलीफ है। वैसे तो तकलीफ कुछ न कुछ सबके यहां पर है क्योंकि तकलीफों का यह संसार है। सुख के लिए आदमी काम करता है लेकिन सुख को दु:ख में बदलता चला जाता है। एक दुकान, चार दुकान खोला, एक कारखाना, चार कारखाना लगाया, एक गाड़ी चार गाड़ी चलाया। और बस गाड़ी लड़ गई, दुकान पर चोरी हो गई, छापा पड़ गया, दुकान में माल नहीं है, यह नहीं, वह नहीं, तो सुख के लिए आदमी करता है लेकिन वही दु:ख में बदल जाता है। तो दुखी तो सब हैं। सुखी तो कोई है ही नहीं। नानक दुखिया सब संसार, सुखी वही जो नाम आधारा। जो नाम को पकड़ लेता है, नाम की कमाई करता है, वही सुखी होता है। नाम का जाप कितने लोग करते हैं, यह तो जो आप करते हो, वही जान सकते हो। इन लोगों ने (असली) रास्ता छोड़ दिया और मन से सब अलग-अलग बना लिया। जितने भी सन्तमत के लोग हैं, मैं आलोचना बुराई किसी की नहीं करता हूं, उनसे तो अच्छे हैं जो चोरी, डकैती, व्यभिचार, खाने-पीने, मौज-मस्ती में फंसे हुए हैं। कम से कम सन्तमत को समझते हैं। नाम को अपने-अपने तौर-तरीके से याद करते हैं। लेकिन सही जो सुरत शब्द योग की साधना थी, उसको तो लोगों ने दिया छोड़ और यह जो काल मत की साधना है, उसको जब अपना लिए तो फायदा नहीं दिख रहा है। तो सुखी तो कोई है ही नहीं, सब दुखी है। आपको जितनों को घर में तकलीफ है, जयगुरुदेव नाम की ध्वनी बुलवाना। और आप लोग, जिनको नाम दान दूंगा, नाम लेकर के समझकर के और फिर उसको करना। करोगे तभी आपको फायदा दिखेगा।
सतसंगियों के बच्चों का मन डगमगता नहीं है
महाराज जी ने 1 जनवरी 2023 उज्जैन आश्रम में बताया कि सतसंग सुनते-सुनते बदल जाते हैं। इसलिए बच्चों को सतसंग में लाया जाता है कि उनके संस्कार बने। जो छोटे बच्चे हैं, अंडा खाने वाले बच्चों के बीच में रहते हैं, लेकिन सतसंगियों के बच्चे अंडा नहीं खाते, कहते हैं गन्दी चीज है, नहीं खायेंगे। बचपन में जो कविता, पहाड़े याद कर लेते हैं, बीच में दोहरा लेन तो भूलता नहीं है। बचपन में जो संकल्प बच्चा बनाता है, बचपन में जो याद हो जाता है, वह भूलता नहीं है। खराब बच्चों के बीच में भी अपने सतसंगियों के बच्चे रहते हैं लेकिन उनका मन डगमगा, डोलता नहीं है क्योंकि उनका मन भक्ति में, गुरु भक्ति में, प्रभु को याद करने में, जयगुरुदेव नाम में लग गया है। जो संस्कारी, ध्यान भजन करने वाले, बराबर सतसंग सुनने वाले, नाम ध्वनी बोलने वाले, माता-पिता के बच्चे होते हैं, उन सतसंगियों के बच्चे फिल्मी गाना गाते हुए, नाचते हुए नहीं मिलते हैं।
तकलीफों को दूर होने में देर नहीं लगती है
महाराज जी ने 31 दिसंबर 2022 दोपहर उज्जैन आश्रम में बताया कि गुरु का काम और नाम बराबर आगे बढ़ाने में लगा हुआ हूं जिससे जयगुरुदेव नाम लोगों के कान तक पहुंच जाए। और इस समय पर जो भगवान का जीता जागता नाम, जयगुरुदेव है उसको लोग बोलने लग जाए, उसका फायदा उठाने लग जाए। अनेकों देशों में गुरु महाराज का फोटो लगवा दिया और वहां प्रेमी प्रचार कर रहे हैं। अपने-अपने तौर-तरीके से, जो जितना कर सकते हैं जयगुरुदेव नाम को बता, फैला रहे हैं, उससे लोगों को फायदा दिला रहे हैं। जो वक्त का इस समय का वर्णात्मक जयगुरुदेव नाम है, उसका फायदा लोगों को मिल रहा है। जिस तरह से लोगों ने त्रेता में राम नाम से फायदा उठाया, द्वापर में कृष्ण नाम से, कलयुग में कबीर साहब के समय पर सत साहब नाम से, नानक साहब के समय वाहेगुरू नाम से, शिव दयाल जी महाराज के समय पर राधास्वामी नाम से फायदा उठाया, ऐसे ही इस समय पर जयगुरुदेव नाम से लोग फायदा उठा रहे हैं, मुसीबत तकलीफ में बोल करके अपनी बचत कर रहे हैं। बीमारी तकलीफों में जयगुरुदेव नाम की ध्वनी सुबह-शाम बोल करके उसमें राहत पा रहे हैं, बीमारी तकलीफों को लोग हटा रहे हैं। नाम दान देता हूं। नाम दान देना है, आखरी वक्त देना है। जब तक यह शरीर चलता रहेगा तब तक नाम दान देना है। क्यों? क्योंकि गुरु का आदेश है। गुरु के आदेश का पालन करना सर्वोपरी भक्ति होती है। गुरु का आदेश चाहे रैन में हो, चाहे बैन में, चाहे सैन में हो, उसको करना चाहिए, शिरोधार्य होना चाहिए। नामदान आपको दिया जाएगा। तो कुछ लोग तो समझा कर लाते हैं। वहीं से, समझा पक्का करके ही लाना चाहिए, नामदान के बारे में बता करके ही लाना चाहिए कि नामदान क्या होता है। नाम नाम से क्या फायदा होता है। नाम का सुमिरन, ध्यान, भजन कैसे किया जाता है। यह सब पहले ही संकेत में बता कर के लाना चाहिए। नाम को तो नहीं बताना चाहिए लेकिन नाम के बारे में बता देना चाहिए। बहुत से लोग तो यह काम करते हैं। देखो बड़े वह भाग्यशाली है जो नाम गुरु से है पाई, मगर धन्य गुरु मुख हैं जो जीव सतसंग में लाई। सतसंग में लाना चाहिए। भटके हुए को रास्ता बताना, बुरों को सुधारना चाहिए। यह मनुष्य का धर्म, कर्तव्य होता है। यह करना चाहिए। कुछ लोग तो समझा कर लाते हैं। और कुछ लोग ऐसे करते हैं कि चलो बाबा से मिलोगे तो दु:ख तकलीफ दूर हो जाएगी। बाबा सुनते ही दु:ख दूर कर देंगे। ऐसा कुछ नहीं है। कर्म कबके जमा होते हैं, मैल, काई कैसी होती है तो उसकी सफाई करने में तो समय लगता है। तकलीफ में फायदा तो होता है जब आते हैं। गुरु महाराज की दया, जब ऐसे कार्यक्रम होता है, बरसती है। लेकिन अगर बताये गए उपाय को विश्वास के साथ किया जाए तो तकलीफें लोगों की चली, जुदा भी हो जाती है। बीमार, समस्याओं से घिरा हुआ, कैसे भी परेशानी में है, बताये गए उपाय को अगर करता है तो फायदा हो जाता है। लेकिन उसमें थोड़ा समय लगता है। और नाम दान के बारे में बता करके लाते हैं, नामदान दिला करके, सुमिरन ध्यान भजन समझा देते हैं, और वह करने लगते हैं तो तकलीफों के जाने में, कर्मों के कटने में देर नहीं लगती है।
सुनते-सुनते लोग शाकाहारी हो जाते हैं
महाराज जी ने 4 दिसंबर 2020 सायं बावल, रेवाड़ी (हरियाणा) में बताया कि आदमी के लिए सुबह का टहलना बहुत ही फायदेमंद होता है। सुबह सूरज निकलने से पहले अगर आदमी दो-तीन किलोमीटर घूम करके आ जाए तो यह शुगर, ब्लड प्रेशर, घुटने का दर्द, गैस सब चला जाता है। समझो अपने आप, बगैर दवा के निकल जाता है। सुबह जब लोगों को प्रभात फेरी निकालने के लिए कहा गया और प्रभात फेरी निकालना शुरू किए तो बताने लगे कि घुटने का दर्द खत्म हो गया, गैस पेट से संबंधित या अन्य जो तकलीफ थी, चलने में दिक्कत, चलने में चक्कर आना आदि सब खत्म। क्या कहते हैं- दर्द बेचन में हरि मिले, एक पंथ दो काज। दोनों काम हुआ। एक तो शाकाहारी का प्रचार भी हो गया और स्वास्थ्य के लिए टहलना भी हो गया। शाकाहारी का प्रचार इस तरह से प्रेमियों ने किया कि- हाथ जोड़कर विनय हमारी, हो जाओ सब शाकाहारी। रोज नारे लगाते हुए गए। तो एक आदमी निकला, खट से दरवाजा खोला और कहा कि अब कल से इधर प्रचार में मत आना। सीधे-साधे लोग बेचारे डर गए। बोला देखो अब कल से यहां प्रचार में मत आना। रोज आते हैं, हाथ जोड़ कर कहते हैं, शाकाहारी हो जाओ, शाकाहारी हो जाओ। लो हो गया मैं आज से शाकाहारी। ले आओ कागज, लिख कर दे दूं। अब नहीं खाऊंगा, मांसाहार नहीं करूँगा। अंडा मछली नहीं खांऊगा, शाकाहारी हो गया। जाओ, दूसरी जगह जाना, वहां प्रचार करना। रोज आकर हाथ जोड़ते हो। तो प्रेमियों! देखो, हाथ जोड़ने का कितना असर होता है। दोनों काम हुये।