-डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’, इन्दौर
चतुर्मूर्तिका अर्थात् जिस शिलाफलक में एक साथ चार तीर्थंकर मूर्तियाँ उत्कीर्णित हों, इन्हें चतुःतीर्थी भी कहते हैं। गंधर्वपुरी में कई चतुर्मूर्तिका प्रतिमाएँ प्राप्त होती हैं। इनमें से एक सुन्दर चतुर्मूर्तिका प्रतिमा में मूलनायक अर्थात् मध्य की बड़ी प्रतिमा फणयुक्त पार्श्वनाथ की है, उसके वितान में तीन लघु तीर्थंकर हैं। उसका परिचय ‘‘रहस्यमयी नगरी की छह पार्श्वनाथ प्रतिमाएँ’’ शीर्षक से हमने दिया है। यहाँ तीन अन्य चतुर्मूर्तिका प्रतिमाओं का परिचय प्रस्तुत है-
चतुर्मूर्तिका तीर्थंकर ऋषभनाथ प्रतिमा-
यहाँ एक सुन्दर प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ/ऋषभनाथ की प्रतिमा प्राप्त हुई है। कायोत्सर्ग समपादासन में खड़ी हुई इस प्रतिमा के साधारण पादपीठ में बैठे हुए वृषभ की आकृति टंकित है। इसका श्रीवत्स चिह्न क्षरित हो गया है, कुछ भाग अवशिष्ट है। केश लटिकाएँ सकंधों पर स्पष्ट हैं। उष्णीष युक्त घुंघुराले केश उत्कीर्णित हैं। यह प्रतिमा स्वयं में अप्रतिम है। इसके परिकर में प्रभावल के अतिरिक्त अन्य प्रातिहार्य नहीं हैं, किन्तु दोनों पाश्वों में मानस्तंभ जैसे एक-एक स्तंभ हैं, इनमें ऊपर देवकुलिका में एक-एक पद्मासन लघु जिन आमूर्तित हैं। वितान भाग में शीर्ष पर भी एक पद्मासन लघुजिन उत्कीर्णित हैं, इस प्रतिमा की देवकुलिका नहीं है। मुख प्रतिमा का लांछन वृषभ और स्कंधों पर केश-लटिकाएँ होने से यह प्रतिमा आदि तीर्थंकर ऋषभनाथ की निर्णीत है। इसका समय 11-12वीं शताब्दी माना गया है।
चतुर्मूर्तिका तीर्थंकर परिकर दक्षिण भाग-
यहाँ प्राप्त यह शिलाखण्ड विशाल प्रतिमा का दाहिनी ओर का परिकर भाग जान पड़ता है। इस प्रतिमांकन में नीचे मुख्य प्रतिमा कायोत्सर्गस्थ है। क्षरित हो जाने पर भी वक्ष पर श्रीवत्स का अंश दिखाई देता है। प्रतिमा के पादाधार के समकक्ष पर ही दोनों ओर चँवरवाहक हैं, मस्तक के दोनों ओर गगनचर माल्यधारी देव हैं, मस्तक के ऊपर देवकुलिका का यथोचित अंकन के बाद मानस्तंभ के समान कंगूरे आदि बने हैं, उपरिम भाग में मध्य में पद्मासन जिन है, उनके दोनों ओर एक-एक कायोत्सर्ग लघु जिन हैं, मध्य जिन के दोनों ओर अशोक वृक्ष के पल्लव हैं। इसके वितान में शिखर की गुम्बद है। इस शिलाफलक में दायें ओर अन्य कुछ नहीं है, संभवतः मूलनायक प्रतिमा से लगाकर स्थापित किया जाता हो, किन्तु इसमें बायें तरफ अन्य शिल्पांकन भी है। मुख्य प्रतिमा के पादाधार के समानान्तर नीचे मूलनायक प्रतिमा की यक्षी उत्कीर्णित है, उसके ऊपर गजमुख, फिर शार्दूल-ब्याल, शार्दूल के पीछे हाथ जोड़े आराधक उत्कीर्णित है। उससे ऊपर मकरमुख है। ये सब बाह्य मुख हैं।
चतुर्मूर्तिका तीर्थंकर परिकर बाम भाग-
यह परिकर मूख्य प्रतिमा के बायें ओर का भाग प्रतीत होता है। यह प्रतिमा फलक नीचे भग्न है या जमीन में धँसा हुआ है इस कारण मुख्य कायोत्सर्ग प्रतिमा का घुटने से नीेचे का भाग अदृष्ट है। चँवरवाहकों के केवल शिरों के ऊपरी भाग और यक्ष के ऊपरी भाग दृष्ट हैं। शेष शिल्पांकन उपरि वर्णित दक्षिण भाग के शिलाफलक के समान है।
22/2, रामगंज, जिंसी, इन्दौर
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